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विभाग त्रीजो
( डाबी तरफनां चित्रो नीचेना चोकठानुं लखाण)
श्रीमान महीपालकुं मेघउपमा
छप्पय ||
घन गर्जत आकास तुं घन गर्जत खत पर, जलधार तोय अमोधह बेंन झर ।
घन विकासत धरत तुं जन हृदय विक्रासन, वन वल्लभ हे मोर. तुं वल्लभ कवि सासन |
ओ जलपत तुं दलपत नृपत महीपाल मांन अविचल रहें, मेघ जिस्यों बरसत सदा सु दीपविजय कवि यौं कहे ॥१॥
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अनुसंधान- २२
विभाग चोथो
(समुद्रबंधना मोटा कोठाना ३६ दोहरा)
श्रीवरदा कवि मात तुं । महमाई जग आद । तुं चतुरा कवि वच सुधा सुरनर वंदत पाद सोभा भासी जनपती । रमा सहित हरि धीर । दुरित हरत विभुता गुनी । नमें सर्बे जस वीर गवरि तनुज कीजे दया । सब भय चंता वार | नत पय पंकज सबो । सयो तुं एक मन बार व मानसिंह किर्ति । समुद्रबंध दधि नाम । यां रह रवि ससि मेर समु । मुदिर जातिबा काम ||४|| अरिजन मान सुदेख तब । क्योंन डरत चलचित । ज्यों, घु घू भानु निरख रवी होय त्युं हत नित
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॥ १ ॥
॥२॥
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