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January-2003
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तत्रादौ श्रीसमुद्रबंधको महात्म ॥
छप्पय :
समुद्रबंध आसीस, सबपें श्रेष्ठबधाई. । समुद्रमोदिनी अंतसु, एकछत्र अधिकाई । होत निकंटक राज, सबनृप सेर्वत बंका । बंकारिपुर्मदमत्त, पुनि होत संत्रु संका । मेर रवी ससी समुद्रलग, अविचल राजे नित नित बहो । मानराज कविंदीप दोउं, कोटि कोटि मंगल लहौ ॥१॥ पुनः महात्म || छप्पय : . समुद्रबंध फल उदय, गजलीला बहो आवे, समुद्रबंध फलंउदय, सुदिन दिन दोलत थावे । समुद्रबंध फलउदय, सपुत्र कलंत्र सवाई, समुद्रबंध फलंउदय, सुमंगल गीत वधाई । समुद्रबंध महोतम अतुल, राजलील लाभे घणी, मानसीह महीपाल कीसु, कविराज दीप कीरति भनी ॥२॥ यों समुद्रबंध के सर्वाक्षर ।१२९६। अरु १४ रन दूसरी बेर बंचीजे ताके ।३५५। अक्षर हैं। यों सर्व मिलके । १६५१। अक्षर हैं ।। धनुषबंध । चोकी बंध । कपाटबंध । हलबंध । हारबंध । मालाबंध | निसरणीबंध । प्रमुख छोटे छोटे चित्रकाव्य हे ।
सो सब राजाकुं चढे । अरु यो समुद्रबंध बडो चित्रकाव्य आसिरबचन । चक्कवें राजाकुं चढ़े, अरु छत्रपति राजाकुं चढे या नीति है । ता थें छत्रपति श्रीमान महिपालकुं यो आसिर्वचन समुद्रनामा
सदा जयकारी भव भव ॥ श्रेयः ।
१. चक्रवर्ती ।
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