________________
40
अनुसंधान-२८ -सिज्झिहहि ९० ये दोनों कृतियाँ प्रवचनसार से बाद की है क्योंकि '-स्स' के बदले में '-ह' या-'हि' का प्रयोग परवर्ती काल का लक्षण है।
(vi) सं.भू.कृदन्त के प्रत्यय लिंगप्रा. शीलप्रा. बारसअणु. -त्ता ० -च्चा .
प्रवचनसार
-इय
.
-तु . -तूण १ -दूण ० -ऊण २ -ऊणं (संस्कृत जैसे रूप)
यह तालिका देखने के बाद ऐसा मालूम होता है कि लिंगप्रा. और शीलप्रा. में -ऊण, -ऊणं का ही प्रयोग हुआ है. लिंगप्रा. में जैसे कि - काऊण १, १३ और शीलप्रा. में जैसे कि- णाऊण ३,७,८ वेदेऊण १६ 'ऊणं' प्रत्यय के उदाहरण-पणमिऊणं १, होऊणं १०, जबकि बारसअणु. में -ऊण का प्रयोग ५०% किया गया है, जैसे कि- काऊण ७७, गहिऊण ३३, चईऊण ३१, ७८, णमिऊण १, परिभाविऊण ८९, सेविऊण ३३, होऊण ७९. बारसअणु. में दूसरे प्रत्ययों का प्रयोग ५० % मिलता है जैसे कि - चत्ता ८१, किच्चा ७५, वज्जिय ६१, णिग्गहित्तु ७९, मोत्तूण ५४, ७३, ७४, हंतूण ३३. प्रवचनसार में -ऊण, -ऊणं प्रत्यय का प्रयोग एक भी बार नहीं मिलता है और अन्य प्राचीन प्रत्यय जैसे कि -त्ता, -च्चा, 'इय और -दूण २८% मिलते हैं । संस्कृत के समान रूप (ध्वनिपरिवर्तन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org