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अनुसंधान-२८ लिंगप्राभृत, शीलप्राभृत, बारसअणुपेक्खा और प्रवचनसार में भृ धातु के लिए प्राकृत रूप 'भव', 'भो', 'हव', 'हो', का प्रयोग किया गया है। इनमें 'भो' का प्रयोग एक भी ग्रंथ में नहीं मिलता है और भव का प्रयोग सिर्फ प्रवचनसार में किया गया है । 'हव' लिंगप्राभृत में एक भी बार प्रयुक्त नहीं हुआ है, शीलप्राभृत में २ बार, बारसअणु. में २१ बार और प्रवचनसार में ४१ बार इसका प्रयोग मिलता है । 'हो' का लिंगप्राभृत में ४ बार, शीलप्राभृत में ६ बार, बारसअणु में १३ बार और प्रवनचसार में १३ बार किया गया है।
'भो', 'भव', रूप पूर्वकाल का है. इसमें 'भव' का प्रयोग सिर्फ प्रवचनसार में ही मिलता है इसलिए प्रवचनसार की भाषा तुलनात्मक दृष्टि से पूर्वकाल की है ऐसा प्रतीत होता है ।
(iii) नपुं. प्र.द्वि.ब.व. के प्रत्यय लिंगप्रा. शीलप्रा. बारसअणु.
प्रवचनसार
-णि
و
له اسه
कारक प्रत्ययों का विश्लेषण देखे तो लिंगघ्राभृत और शीलप्राभृत में - "णि' प्रत्यय मिलता ही नहीं है, जबकि शीलप्राभृत में '-ई' प्रत्यय १००% मिलता है। बारसअणु. में - "णि' प्रत्यय ६६% और '-ई' प्रत्यय ३४% मिलता है, और प्रवचनसार में '-णि' प्रत्यय १००% मिलता है और '-इं' प्रत्यय मिलता ही नहीं है ।।
इससे स्पष्ट होता है कि प्रवचनसार में '-इं' प्रत्यय मिलता ही नहीं है जबकि शीलप्राभृत और बारसअणु. में मिलता है, इसलिए ये दो कृतियाँ परवर्ती काल की है।
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