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मार्च २०१०
भशाली वधू का पुत्र ऋषभदास भी धर्मकृत्य करने में उल्लेखनीय था । हर्षनन्दन के गीतानुसार मुकरबखान नवाब भी आपको सम्मान देता था । अनेक गीतार्थों को उपाध्याय, वाचक आदि पद प्रदान किये और स्वहस्त से अपने पट्ट पर जिनधर्मसूरि को स्थापित किया । उस समय भणशाली वधू की भार्या विमलादे और सधुआ की भार्या सहजलदे व श्राविका देवकी ने पदोत्सव बड़े समारोह से किया ।
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श्रीजिनसागरसूरिजी का शरीर अस्वस्थ हो जाने से वैशाख सुदि ३ को गच्छभार छोड़ कर, शिष्यों को गच्छ की शिखामण देकर वैशाख सुदि ८ को अनशन उच्चारण कर लिया । उस समय आपके पास उपाध्याय राजसोम, राजसार, सुमतिगणि, दयाकुशल वाचक, धर्ममन्दिर, ज्ञानधर्म, सुमतिवल्लभ आदि थे । सं० १७१९ ज्येष्ठ कृष्णा ३ शुक्रवार को आप समाधिपूर्वक स्वर्ग सिधारे । हाथीशाह ने धूमधाम से अन्त्येष्टि क्रिया की । संघ ने दो सौ रुपये खर्च कर गायें, पाड़े, बकरियों आदि की रक्षा की । शान्ति - जिनालय में देववंदन किया । इनके रचित विहरमान बीसी एवं स्तवनादि उपलब्ध हैं । बीकानेर शान्तिनाथ मन्दिर और रेल दादाजी में आपके चरण स्थापित हैं । प्रति - परिचय
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इस प्रति की साइज २५.२ x ४.३ है । चार पत्र हैं । दूसरा पत्र अप्राप्त है । प्रति पत्र पंक्ति लगभग १३ हैं और प्रति पंक्ति अक्षर लगभग ३९ हैं। लेखन १८वीं सदी का प्रारम्भ है । अपूर्ण प्रति है । प्रारम्भ की कृतियाँ वादी हर्षनन्दन कृत है और अन्तिम १४वीं कृति बालचन्द कृत है।
(१) गहूंली गीत
॥ ६० ॥ ढाल - सखीरी
मंगलकारणि सहथइ, आदीसर अरिहन्त सखीरी । सुन्दरिनइ सीखावीयउ, उतपति जास सुणन्त सखीरी ॥१॥ साथीयइ मन लागउजी नन्द्यावर्त इण तास सखीरी । चउरंस चतुरस मारिस्यइ, जाणइ सगलउ गाम सखीरी ॥
साथीयइ मन लागउजी ।