________________
September-2005
रायमई-मणवल्लह सोहगसुंदरह नेमि-चरीयनिज्जइ फलिणी-सामलह ॥१॥ आसि धणो तसु दइया धणवई, सुहमसुर चित्तगइविज्जाहर-रयणमइ, महिंदसुर । अपराजी(जि)य-प्री(प्रि)य-प्रीयमइ पायारणह संखनिवो तसु जसुमइ प्री(प्रि)य, अपराजी(जि)यह ।।२।। नवमभवे सोरियपुरि समुदविजय-घरणि सिवादेविराणी नंदण जायु कुल-तसुण । कत्ती किसिण दुवालसि अपराजी(जि)य-चवणु श्रावणसिय पहु पंचमि मंदरगिरि-ण्हवण ॥३॥ सी(सि)य-छट्ठि सावण सहससमन्निय-वयगहणं रेवइ गिरिवरि सामी रायमह-परिहरणं । दिण चउपन्न-अणंतर आसोऽमावसह केवलनाणी विहरइ तणु जसु दस धणुह ॥४॥ जीविय वरिस-सहस्सं आसाढे अट्ठमीय सियपक्खे । संपत्तं सिद्धिसुहं उज्जिते नमह नेमिजिणं ॥५॥
॥ इति नेमिनाथस्तोत्रम् ||
श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ सामि-सामलय-तणु-कंति-किरणावली, जयउ विलसंत-कल्लाण-घण-मंडली । जयउ धरणिंद- फणि-रयण-रय-विज्जला, भवियघ(ज?)ण-मोर नच्चंति हरिसुज्जला ॥१॥ नाह मर(रु)भूइ-भवि भमी(मि)य वणि गयवरो, देव-सहसार विज्जाहरज्झूअ(हरऽच्चुअ)-सुरो । विज्जनाहो य गोविज्ज कणयापहो चक्कवट्टी य पाणयविमाणच्चुउ(ओ) ॥२।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org