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September-2005
इसमें पद्य केवल ८६ है और शेष भाग गद्य में है। यह गद्य भाग भी महाकवि बाण, दण्डि और धनपाल की शैलीका अनुकरण करता है । शब्दछटा भी आलंकारिक है और ऐतिहासिक घटनाओं का भी निर्देशन है। इसमें तीर्थयात्राओं का विशिष्ट वर्णन है। (यह विज्ञप्ति-पत्र मुनिश्री जिनविजयजी द्वारा सम्पादित होकर जैन-विज्ञप्ति-लेख-संग्रह पुस्तक में प्रकाशित हो चुका
इसी प्रकार विक्रम सम्वत् १४८४ में गच्छाधिपति जिनभद्रसूरि को लिखा गया पत्र विज्ञप्तित्रिवेणी के नाम से प्रसिद्ध है । उस समय आचार्य पाटण में ही विराज रहे थे । पत्र के लेखक थे-जैन साहित्य और साहित्यशास्त्र के धुरन्धर विद्वान् उपाध्याय जयसागरजी । उन्होंने यह पत्र सिन्ध प्रदेश स्थित मलिक वाहनपुर से लिखा था ।
कई लघु विज्ञप्तिपत्र काव्यों के रूप में अथवा महाकाव्य की शैली में या पादपूर्ति-काव्यों के रूप में लिखे गये थे । ये पत्र भी ऐतिहासिक
और साहित्यिक दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखते हैं । कई विज्ञप्तिपत्र चित्रकाव्यबद्ध भी होते हैं अथवा मध्य में चित्रकाव्य भी प्राप्त होते हैं । इन पत्र लेखों में विनयविजयोपाध्याय, मेघविजयोपाध्याय, विजयवर्धनोपाध्याय आदि प्रमुख हैं । इनमें से कतिपय विज्ञप्तिपत्र प्रकाशित भी हो चुके है । २. जैन संघ द्वास गणनायक एवं आचार्यों को प्रेषित :
यह पत्र चित्रबद्ध होने के कारण आकर्षणयुक्त दर्शनीय और मनोरम भी होते हैं । विशाल जन्मपत्री के अनुकरण पर विस्तृत भी होते हैं । इन विज्ञप्तिपत्रों की चौड़ाई १० से १२ इंच होती है और लम्बाई १० फुट से लेकर अधिकाधिक १०८ फुट तक होती है । टुकड़ों को सांध-सांघ कर बंडल-सा बन दिया जाता है । इन विज्ञप्तिपत्रों में सबसे पहले काभकलश, अष्ट मंगल, चौदह महास्वप्न और तीर्थंकरों के चित्र चित्रित किये जाते हैं। पश्चात् राजा-बादशाहों के प्रासाद, नगर के मुख्य बाजार, विभिन्न धर्मों के देवालय और धर्मस्थान, कुंआ, तालाब आदि जलाशय, बाजीगरों के खेल और गणिकाओं के नृत्य भी चित्रित होते हैं । तत्पश्चात् जैन समाज का धर्म जुलूस, साधुजन और श्रावक समुदाय के चित्र भी अंकित होते हैं । उसके
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