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अप्रिल-२००७
आर्यरक्षित,वन्ध्य (विन्ध्य) तथा स्कन्दिलसूरिनु, ४६मां देवधिगणिर्नु तथा तपवंत, जिनशासनना भूषण होय एवा तमाम गणि-आचार्यो- स्मरण कर्यु छे.
४७मां अढी द्वीपना जिनोने वन्दन छे. ४८मां आ काळना छेल्ला थनार आचार्य दुप्पसहसूरिने वन्दन करीने चन्दनबालादि श्रमणीगणने संकलित वन्दना करी छे. ४९मां सीमन्धरजिन अने तेमना गणधर तथा लब्धिसम्पन्न मनिओने वन्दन करीने कर्ता पोताना गुरुर्नु तथा पोतानुं नाम निर्देशे छे. गा. ५०मां मुनिमाला ते मुनिओना नामरूपी मन्त्रनी माला होवानुं जणावीने तेनुं माहात्म्य वर्णवी रचना पूर्ण करे छे.
ऐतिहासिक कही शकाय तेवी केटलीक वातो आमांथी जडे छे ते आम छे : १. आजे 'इसिभासियाई' (ऋषिभाषित) ना नामे अलग अलग ऋषिओनां सुभाषितो के उपदेशोना संग्रहरूप जे आगमग्रन्थ प्राप्त थाय छे, ते नेमिनाथ भगवानना नारद वगेरे २०, पार्श्वनाथना १५ तथा महावीरस्वामीना १०- एम कुल ४५ प्रत्येकबुद्ध साधुओना उपदेशोना संकलनरूप छे (गा. २०). आ ऋषिओनां नामो तथा केटलांक वचनो वर्तमान प्रचलित परम्पराना सन्दर्भमां विलक्षण जणाय तेवां छे. आ प्रत्येक ऋषिने ते ग्रन्थमा ‘अर्हत्' तरीके ओळखावेल छे. सार एटलो के ते तमाम जैन साधको हता; तेओ मात्र महावीरनी परम्पराना ज न होतां तेमना पुरोगामी बे तीर्थंकरोनी परम्परामांना पण हता.
२. वीरस्वामीना ११ गणधरो पैकी चोथा 'व्यक्त' ने अहीं 'विउत्त' नामे तथा 'मौर्यपुत्र'ने अहीं 'मोरीसुत' नामे वर्णवाया छे (गा.२५). तो 'करकण्डु' नामे प्रख्यात राजषिने अहीं 'वरकुण्ड' मुनिना नामे ओळखाव्या छे. प्रसिद्ध छे के 'करकण्डु' ए तेमनुं उपनाम हतुं. (गा. २८). ३. प्रचलित कथानुसार स्थूलभद्रादि ४ मुनिओ सम्भूतविजयसूरिना शिष्यो होवानुं समजाय छे, ज्यारे अहीं तेओने आ. भद्रबाहुना शिष्य गणाव्या छे. वळी, 'चऊहिं रयणिजामेहिं' ए पद द्वारा, ते चारे मुनिओ, एक ज रात्रिना ४ प्रहरोमां, क्रमशः, कालधर्म पाम्या होवानो संकेत पण प्राप्त थाय छे. (गा. ४१-४२).
आ रचनानी, सम्भवतः १७मा शतकमां लखायेली, ३ पत्रोनी
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