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विषों के लिए (उन्हें हर हालत में पूरी तरह नाश करने वाले) परम मंत्र के समान है;
जो सुदेवता के रूप में जन्म आदि सभी प्रकार के कल्याणों का हेतु है, वजह है;
और जो जीव की सर्वोच्च परिणति रूप सिद्ध-भाव का साधक है, सिद्ध भाव को प्राप्त करवाने वाला है,
ऐसा केवलियों के द्वारा प्ररूपित समग्र ऐश्वर्य आदि से युक्त श्रुत आदि रूप धर्म यावत्-जीवन मेरे लिए शरण है, आश्रय है.
दुष्कृत गर्हा
सरण - मुवगओ य एएसि गरिहामि दुक्कडं
अरहंत आदि इन चारों की शरण में रहा हुआ मैं अब मेरे समग्र दुष्कृतों की, खराब कार्यों की गर्हा करता हूँ, एकरार करता हूँ, अंदरूनी असहमति व्यक्त करता हूँ.
जण्णं अरहंतेसु वा, सिद्धेसु वा, आयरिएसु वा, उवज्झाएसु वा, साहूसु वा, साहुणीसु वा, अन्नेसु वा धम्मट्ठाणेसु माणणिज्जेसु पूयणिज्जे,
मैंने अरहंतों के प्रति, सिद्धों के प्रति, आचार्यों के प्रति, उपाध्यायों के प्रति, साधुओं के प्रति, साध्वियों के प्रति, सामान्य से गुणों में अधिक ऐसे धर्म के स्थानरूप (जिनके हृदय में धर्म का वास है ऐसे) जीवों के प्रति, माननीय जनों के प्रति, पूजनीय लोगों के प्रति जो भी दुष्कृत किये है;
तहा माईसु वा, पिईसु वा, बंधूसु वा, मित्तेसु वा, उवयारीसु वा, ओहेण वा जीवेसु, मग्ग-ट्ठिएसु, अमग्ग-ट्ठिएसु, मग्गसाहणेसु, अमग्ग-साहणेसु,
तथा अनेक जन्मों के माताओं के प्रति, पिताओं के प्रति, बंधुओं के
दुनिया की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु क्या है? समय !