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और अरहंत व सिद्ध प्रभु के अनंतज्ञान की साक्षी में मानों साक्षात् उनके ही समक्ष में इन सब की गर्हा एकरार करता हूँ कि मेरे ये सारे के सारे आचरण वे गलत थे, खराब कार्य थे, दुष्कृत थे, त्यागने योग्य थे. एत्थ मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं. ८
इन सब का ...
मिच्छामि दुक्कडं मिच्छामि दुक्कडं
मिच्छामि दुक्कड.
ये सब मेरे दुष्कृत मिथ्या हो जाय, निष्फल हो जाय, उनका अस्तित्व न
रहें.
होउ मे एसा सम्मं गरहा. होउ मे अकरणनियमो.
१. मेरी यह गर्हा सम्यक् गर्हा हो, भाव से सच्ची गर्हा हो..
२.
इसी गर्हा की वजह से मुझे इन सब दुष्कृतों के पुनः अकरण का, न करने का नियम हो जाय.
बहुमयं ममेयं ति इच्छामि अणुसठि अरहंताणं भगवंताणं गुरुणं कल्लाण-मित्ताणं ति.
इन दोनों बातों का मुझे बहुत ही मान है. इसीलिए मैं अरहंत भगवंतों व कल्याणमित्र गुरूओं का (उपरोक्त दोनों बातों को उत्पन्न करने वाले बीज के समान, ऐसा) अनुशासन चाहता हूँ.
प्रणिधान प्रार्थना
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होउ मे एएहिं संजोगो होउ मे एसा सुपत्थणा. होउ मे एत्थ बहुमाणो. होउ मे इओ मोक्खबीयं. ९
मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि
मुझे इन अनुशासकों का संयोग हो.
मेरी यह प्रार्थना, सुप्रार्थना हो, दोष रहित व अवश्य फल देने वाली हो.
कूट आहार हमारे विचारों में भी क्रूरता लाता है.