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बताया है । वे बहुत ज्ञानी थे और साथ-साथ काफी अनुभव ज्ञान भी उनको था । उन्होंने जो कुछ ज्ञान प्राप्त किया था वह केवल गुरुओं की कृपा व आशीर्वाद से ही प्राप्त किया था और जिन्होंने गुरुओं के आशीर्वाद प्राप्त नहीं किये वे समर्थ व विद्वान होते हुए भी संसार में भटक गये हैं । ऐसा उन्होंने देखा है, अनुभव किया है । अतः उन्होंने गुरुओं का जो माहात्म्य बताया है वह सत्य है और आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी वह उचित है ।
प्रत्येक सजीव प्राणी चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म, सभी में एक प्रकार की शक्ति होती है जिसे आध्यात्मिक परिभाषा में आत्मशक्ति कहा जाता है । जबकि आधुनिक विज्ञान की परिभाषा में उसे जैविक विद्युद चुंबकीयशक्ति कहा जाय । उस सजीव प्राणी की विद्युद् चुंबकीयशक्ति की तीव्रता का | आधार आत्मा के विकास पर है । जितना आत्म विकास ज्यादा होगा उतनी | शक्ति का प्रादुर्भाव ज्यादा होगा । यहाँ विकास का मतलब आध्यात्मिक विकास लेना चाहिये ।
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न्यू सायन्टिस्ट नामक विज्ञान सामयिक में निश्चित प्रयोगों के
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बयान प्रकाशित हुये हैं । उसके अनुसार मनुष्य में भी ऐसा मॅग्नेटिक कंपास या चुंबकीय होकायंत्र है अर्थात् हम भी अज्ञात रूप में किसी भी व्यक्ति या चीज के विद्युद् चुंबकीयप्रभाव में आ सकते हैं ।
जिन्होंने विज्ञान का थोड़ा सा भी अध्ययन किया हो उसे मालुम होगा कि लोहचुंबक के इर्दगिर्द उसका अपना चुंबकीय क्षेत्र होता है । और उसे चुंबकीय रेखाओं के द्वारा बताया जाता है । यद्यपि यह चुंबकीय क्षेत्र अदृश्य होने पर भी यदि एक कागज पर एक लोहचुंबक रखकर उसके आसपास में लोह का चूर्ण बहुत ही अल्प प्रमाण में फैला दिया जाय व बाद में अंगुली से ठपकार ने पर वही लोहचूर्ण अपने आप ही चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय रेखाओं के रूप में परिवर्तित हो जायेगा 1 इसी चुंबकीय क्षेत्र में यदि किसी लोह का टुकड़ा आ जाय तो यही लोहचुंबक उसको खींचता है, | आकर्षित करता है । उसके चुंबकीय क्षेत्र में बार बार परिवर्तन करने पर विद्युत् प्रवाह उत्पन्न होता है और इसी विद्युत् प्रवाह को धातु के तार में से प्रसारित करने पर उसमें भी चुंबकत्व उत्पन्न होता है । इस प्रकार विद्युत् शक्ति व चुंबकीय शक्ति दोनों मिलकर विद्युद् चुंबकीय शक्ति पैदा होती है । वैसी ही बल्कि उससे भी ज्यादा सूक्ष्म व शक्तिशाली विद्युचुंबकीय शक्ति
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