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कालचक्र उन पर छोडने पर भी उनकी मृत्यु या शरीर का नाश नहीं होता
2. शारीरिक शक्ति सबसे ज्यादा होने की वजह से मनोबल/मानसिक शक्ति भी सबसे ज्यादा होती है क्योंकि शरीर मजबूत हो तो ही मन मजबूत रह सकता है । अतएव प्रथम संघनन वाले मनुष्य को देव भी ध्यान में से विचलित नहीं कर सकते हैं । __3. मन, वचन, काया की एकाग्रता ही ध्यान है । अतः जिनका शरीर व मन मजबूत होता है उसका ध्यान भी उत्कृष्ट / श्रेष्ठ होता है । अतएवं आध्यात्मिक परिस्थिति भी उत्तमोत्तम होती है । ___4. जिनको शुभ कर्म का ज्यादा उदय होता है उनकी जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति भी ज्यादा होती है । तीर्थकर परमात्मा ने पूर्व भव में शुभकार्य व शुभभाव द्वारा सब से विशिष्ट पुण्य युक्त तीर्थकर नामकर्म का बंध किया है । उसके उदय व उसके साथ संबंध रखनेवाले अन्य शुभकर्म भी उदय में आते हैं । अतः उनकी जैविक विद्युत् चुंबकीय शक्ति भी सबसे ज्यादा होती है । ___5. तीर्थकर होने की वजह से प्रायः उनको किसी भी प्रकार के अशुभ कर्म का उदय नहीं होता है । अतः उनसे संबंधित जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति में किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं पाया जाता है ।
6. आत्मा के गुणों को आवृत्त करने वाले, आत्मा की अनंत शक्ति को प्रगट करने में बाधक मुख्य चार कर्म हैं : (1) ज्ञानावरणीय, (2) दर्शनावरणीय, (3) मोहनीय और (4) अंतराय, जिसे घातीकर्म कहते है | ये कर्म केवलज्ञानी में पूर्णतया दूर हो जाते हैं । अतः उनकी आत्मा की शक्ति प्रकट हो जाती है । उसका वे स्वयं व अन्य जीव प्रगट रूप से अनुभव करते हैं। __ ऊपर बताया उसी प्रकार छः प्रकार से केवलज्ञानी तीर्थकर परमात्मा की शक्ति उत्तमोत्तम प्रकार की व सबसे ज्यादा प्रगट होती है । यही शक्ति सूक्ष्म जैविक विधुदचुंबकीय ऊर्जा के स्वरूप में होती है । इस ऊर्जा को पृथ्वी सहन न कर सकने से सुवर्ण कमल पर प्रभु पाद स्थापन करके विहार करते हैं ऐसा नहीं है किन्तु इस शक्ति से वातावरण ज्यादा शक्तिशाली बन जात है । इस शक्ति को मनुष्य या अन्य प्राणी झेलने में समर्थ न होने से य | झेलने पर उसको लाभ होने की बजाय नुकसान होने की संभावना होने से
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