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स्वयं इस अभिनन्दन को मुनि श्री विद्यानन्दजी के सान्निध्य ने एवं विद्वज्जनों की उपस्थिति ने अभिनन्दित किया है, यह हमारा सौभाग्य है। महामनस्वी वर्णीजी! हिम कृतज्ञ भाव से आपका अभिनन्दन करतेहुए कामना करते हैं कि
आपका दीर्घ जीवन ज्ञान-गरिमा से सदा पल्लवित पुष्पित रहे और हम उसके अक्षय फलों का अवदान प्राप्त करते रहें। समाज का आदर और उसकी आस्था आपकेप्रति उसी प्रकार उत्कर्ष पर रहे जिस प्रकार आपके गुरुवर्यपर थी। हमारा प्रणाम निवेदित है। ज ब
काहान कृतज्ञ दिल्ली
रमा शान्तिप्रसाद जेन १ दिसम्बर १९७४
भारतीय ज्ञानपीठ
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