SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर का केवलज्ञान स्थल : एक पुनर्विचार : ३९ जाता है किन्तु आगमों के अनुसार उस काल में २०-२५ किलोमीटर दूर स्थित स्थलों को भी उस नगर का बहिर्भाग ही माना जाता था, उदाहरणार्थ- नालन्दा को भी राजगृह का बहिर्भाग ( तस्स णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया उत्तर पुरत्थिमे दिसीभाए एत्थणं नालन्दा नामं ज्ञातासूत्र अध्याय ७ का प्रारम्भिक सूत्र ) कहा गया है जबकि नालन्दा और राजगृह के बीच की दूरी लगभग २० किलोमीटर है। अतः वर्तमान लछवाड़ की जमुई ( जम्भिय) का बाह्य विभाग माना जा सकता है। इस सम्बन्ध में कोई भी विप्रतिपत्ति नहीं है। - वर्तमान में महावीर के जन्म स्थान के रूप में मान्य 'लछवाड़' महावीर का कैवल्य प्राप्ति का स्थान है इसकी पुष्टि अन्य तथ्यों से भी होती है। प्रथमतः इसके समीप बहने वाली 'ऊलाई' नामक नदी 'उजुवालिया' का ही अपभ्रंश रूप है। क्योंकि प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से उजुवालिया का उलाई रूप सम्भव है। सर्वप्रथम लोप के नियमानुसार 'ज' का लोप होने पर और व का उ होने पर तथा तीनों ह्रस्व उ का ऊ होने पर ऊलिया रूप होगा, इसमें भी ऊ+ल+इ+य+आ (ऊलइया) में इ+य का दीर्घ ई होकर आ का स्थान परिवर्तन होकर ल के साथ संयोग होने से ‘ऊलाई' रूप बनता है । पुनः संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में उजुवालिया (ऋजुवालिका) के स्थान पर ऋजुकूला रूप भी मिलता है। प्राकृत के नियमों के '' अनुसार ॠ का उ, मध्यवर्ती ज का लोप होने पर जु का उ और मध्यवर्ती क का लोप होने पर कू का ऊ उस प्रकार उ+उ+ऊ+ला में दोनों ह्रस्व उ का दीर्घ ऊ में समावेश होकर ऊला रूप बनता है, जिसमें मुख सुविधा हेतु ई का आगम होकर ऊलाई रूप बनता है । ज्ञातव्य है कि यही नदी अन्य जलधाराओं से मिलती हुई आगे चलकर जमुई के आसपास क्यूल के नाम से जानी जाती है, यह भी कूल का अपभ्रंश रूप लगता है। इससे यह सिद्ध होता है - ऊलाई जो जमुई नगर से आगे चलकर क्यूल के नाम से जानी जाती है ऋजुवालिका अथवा ऋजुकूला का ही अपभ्रंश रूप है। अतः नदी के नाम की दृष्टि से भी महावीर का केवल ज्ञान स्थल वर्तमान लछवाड़ ही है। लछुवाड़ नाम भी लिच्छवी वाटक अर्थात् लिच्छवी का मार्ग या लक्ष्यवाट अर्थात् लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग ऐसा सिद्ध करता है। चूंकि इस प्रकार लिच्छवी महावीर का ज्ञान प्राप्ति या लक्ष्य प्राप्ति का स्थल होने से ही यह स्थल लछुवाड़ कहलाया होगा, इस सम्भावना को पूर्णतः निरस्त नहीं किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229178
Book TitleMahavir ka Kevalgyan Sthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf
Publication Year2003
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy