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१२२ निर्धारित होती है उसे निम्न सारिणी द्वारा स्पष्टतया समझा जा सकता है----
बृहद्गच्छीय देवसूरि
आदित्यअजितदेवसूरि
आनन्ददेवसूरि (पट्टधर)
नेमिचन्द्रसूरि (प्रथम)
पट्टधर
प्रद्योतनसूरि
पट्टधर
जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर)
आम्रदेवसूरि (शिष्य)
श्रीचन्द्रसूरि (शिष्य)
हरिभद्रसूरि विजयसेनसूरि नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) यशोदेवसूरि गुणाकर पार्श्वदेव (मुख्य पट्टधर) (शिष्य पट्टधर) (शिष्य पट्टधर) (शिष्य पट्टधर) (शिष्य) (शिष्य) प्रस्तुत कृति का रचनाकाल :
यद्यपि प्रवचनसारोद्धार की प्रशस्ति में उसके रचनाकाल का स्पष्ट निर्देश नहीं है, किन्तु उसके कर्ता नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) का सत्ताकाल विक्रम की १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर १३वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक सुनिश्चित है। उन्होंने अपने अनंतनाहचरियं में उसके रचनाकाल का भी स्पष्ट निर्देश किया है। ग्रन्थ के रचनाकाल के सम्बन्ध में ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्ति में उन्होंने 'रसचंदसरससेवरिसे विक्कमनिवावकन्ते' ' ऐसा स्पष्ट उल्लेख किया है इससे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ की रचना वि०सं० १२१६ में हुई थी। इस कृति में कुमारपाल के राज्यकाल का भी स्पष्ट निर्देश है। इससे भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है कि उन्होंने जब वि०सं० १२१६ में अनंतनाहचरियं की रचना की थी, तब गुजरात में कुमारपाल शासन कर रहा था। अत: उनका सत्ताकाल विक्रम की १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से १३वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक सिद्ध होता है। ईसा सन् की दृष्टि से तो उनका सत्ताकाल ईसा की १२वीं शताब्दी सुनिश्चित है।
प्रवचनसारोद्धार के टीकाकार सिद्धसेनसूरि ने इसकी टीका की रचना विक्रम संवत् १२४८ मतान्तर से विक्रम संवत् १२७८ में की थी। टीका प्रशस्ति
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