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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१६ कर्ता परिचय
चतुर्विध संघ की महिमा का गान स्वयं तीर्थंकर भगवंत देशना के पूर्व नमो तित्थस्स कहकर किया करते हैं। उसी संघ के उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित पूज्य महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म.सा. का नाम विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य भाग के गीतार्थ, विद्वान एवं लोकमान्य साधु के रूप में विख्यात है। इसी कारण उनके द्वारा रचित कृतियाँ आज जन-जन के मुख से सस्वर होती हैं।
पं. नित्यानंदजी विरचित क्षमाकल्याण चरित (संस्कृत-पद्य) के अनुसार आपने बीकानेर के समीपवर्ती गांव केसरदेसर के ओसवाल वंशीय मालु गौत्र में वि.सं. १८०१ में जन्म ग्रहण किया था। जन्म का नाम खुशालचन्द था। आपने वि.सं. १८१२ में खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनलाभसूरिजी म. के विजयी राज्य में वाचक अमृतधर्मजी म. से दीक्षा ग्रहण की। आपके धर्म प्रतिबोधक और गुरु वाचकश्री अमृतधर्मजी म.थे। आपका विद्याध्ययन उपाध्याय श्री राजसोमजी म. और उपाध्याय श्री रूपचन्दजी म. (रामविजयजी) के निर्देशन में हुआ था। ___ वर्तमान में खरतरगच्छीय साधु-साध्वीजी भगवंत जिस वासचूर्ण का उपयोग करते हैं, उसे संपूर्ण विधि-विधान के साथ आपने ही अभिमंत्रित किया था। वही वासचूर्ण गुरुपरंपरानुसार आज तक दीक्षा, बड़ी दीक्षा, योगोद्वहन, पदारोहण आदि प्रत्येक विधि-विधान में आपका नाम लेकर निक्षेप किया जाता है। ऐसा उदाहरण प्रायः समग्र जिनशासन में विरल ही है। आपका स्वर्गवास बीकानेर में वि.सं. १८७३ पौष वदि १४ को हुआ था। इस वर्ष पौष वदि १४ बुधवार ता. २८ दिसम्बर २०१६ को उनके स्वर्गवास के दो सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। आपकी शिष्य संतति अद्यावधि विद्यमान है। ___ आपका विचरण क्षेत्र राजस्थान, काठियावाड, गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि में प्रमुखता से हुआ। अपने जीवनकाल में जहाँ साहित्य रचना का अद्भुत कार्य अंतिम समय तक जारी रहा, वहीं परमात्म भक्ति से ओतप्रोत मन ने शताधिक रचनाएँ कर भक्तों को भावप्रवण भेंट देकर सम्यक्त्व को स्थिर किया। __ आपके द्वारा रचित साधुविधि प्रकाश, श्रावकविधि प्रकाश, प्रतिक्रमण हेतु विचार जैसे ग्रंथ आपकी क्रियाशीलता की पहचान उजागर करते हैं, वहीं
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