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________________ चाहे जैन-धर्म हो, चाहे बौद्ध-धर्म हो, चाहे वैदिक-धर्म हो, चाहे अन्य कोई भी परम्परा--सभी ने हमारे अतीत की बड़ी ही रम्य झाँकी प्रस्तुत की है। वह दिव्यातिदिव्य स्वर हमारा ही स्वर था, जो सब ओर प्रतिध्वनित होकर विश्व के कोने-कोने में जागरण का पावन सन्देश दे सका। हमारा क्षुधित वर्तमान : किन्तु, उस अतीत की गाथाओं को दुहराने मात्र से भला अब क्या लाभ? आज तो हमारे सामने, हमारा वर्तमान एक विराट प्रश्न बनकर खड़ा है। वह समाधान मांग रहा है कि कल्पना की सुषमा को भी मात कर देने वाला हमारा वह भारत आज कहाँ है ? क्या आज भी किसी स्वर्ग में देवता इसकी महिमा के गीत गाते हैं ? भारतवासियों के सम्बन्ध में क्या माज भी वे वहीं पुरानी यशस्वी गाथाएँ दुहराते होंगे? आज के भारत को देखकर तो ऐसा लगता है कि वे किसी कोने में बैठकर हजार-हजार प्राँसू बहाते होंगे और सोचते होंगे--अाज का भारत कैसा है ? क्या यह वहीं भारत है, जहाँ अध्यात्म की दिव्य प्राण-शक्ति कभी राम, तो कभी कृष्ण, और कभी बुद्ध, तो कभी महावीर बनकर जिसकी मिट्टी को महिमान्वित करती थी? जहाँ प्रेय श्रेय के चरणों की धूल का तिलक करता था। क्या यह वही भारत है ? ___अंग्रेजी कवि हेनरी डिरोजियो ने अपने काय्य 'झंगीरा का फकीर' की भूमिका में ठीक ऐसी ही मन:स्थिति में लिखा था-- "My Country: in the days of Glory Past A beauteous halo circled round thy brow And worshipped as a deity thou wast: Where is that glory, where is that reverence now The eagle pinion is chained down at last And grovelling in the lowly dust art thou: Thy minstrel hath no wreath to weave for thee Save the sad story of they misery." आज यही सत्य हमारे सामने आ खड़ा है। आज का भारत अत्यन्त गरीब है । सुदूर अतीत नहीं, सतरहवीं शताब्दी के भारत को ही ले लीजिए। उस समय के भारत को देखकर फ्रांसीसी यात्री बरनियर ने क्या कहा था? उसने कहा था “यह हिन्दुस्तान एक अथाह गड्ढा है, जिसमें संसार का अधिकांश सोना और चांदी चारों तरफ से अनेक रास्तों से आ-आकर जमा होता है और जिससे बाहर निकलने का उसे एक भी रास्ता नहीं मिलता।" किन्तु, लगभग दो सौ वर्षों की दुःसह गुलामी के बाद भारत के उस गड्ढे में ऐसेऐसे भयंकर छिद्र बने कि भारत का रूप बिलकुल ही विरूप हो गया। उस दृश्य को देखते आँखें झेंपती हैं, प्रात्मा कराह उठती है। विलियम डिगवी, सी० आई० ई० एस० पी० के शब्दों में "बीसवीं सदी के शुरू में करीब दस करोड़ मनुष्य ब्रिटिश भारत में ऐसे हैं, जिन्हें किसी समय भी पेट भर अन्न नहीं मिल पाता......इस अधःपतन की दूसरी मिसाल इस समय किसी सभ्य और उन्नतिशील देश में कहीं पर भी दिखाई नहीं दे सकती।"२ १. भारत में अंग्रेजी राज (द्वितीय खण्ड) सुन्दरलाल, २. वही पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212392
Book TitleDesh Ki Chikat Samasya Bhukh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size848 KB
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