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________________ देवप्रभसूरि :आप मलधारगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इनके द्वारा रचित पाण्डवचरित का पूर्व में उल्लेख किया गया है। इसमें १८ सर्ग हैं । इसका कथानक लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के चरित्र पर आधारित है, जो कि जैन परम्परा के अनुसार वर्णित है । यह एक वीर रस प्रधान काव्य है। पाण्डवचरित के कथानक का आधार षष्ठांगोपनिषद् त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित तथा कुछ अन्य ग्रन्थ हैं, यह बात स्वयं ग्रन्थकर्ता ने ग्रन्थ के १८वें सर्ग के २८०वें पद्य में कही है। इसके अतिरिक्त मृगावतीचरित अपरनाम धर्मशास्त्रसार, सुदर्शनाचरित, काकुस्थकेलि आदि भी इन्हीं की कृतियां हैं। नरचन्द्रसूरि :जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है ये मलधारी देवप्रभसूरि के शिष्य और महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरू थे। ये कई बार वस्तुपाल के साथ तीर्थयात्रा पर भी गये थे। महामात्य के अनुरोध पर इन्होंने १५ तरंगों में कथारत्नसागर की रचना की। इसमें तप, दान, अहिंसा आदि सम्बन्धी कथायें दी गयी हैं। इसका एक नाम कथारत्नाकर भी मिलता है। वि.सं. १३१९ में लिखी गयी इस ग्रन्थ की एक प्रति पाटण के संघवीपाड़ा ग्रन्थ भंडार में संरक्षित है। इसके अतिरिक्त इन्होंने प्राकृतप्रबोधदीपिका, अनर्घराघवटिप्पण, ज्योतिषसार अपरनाम नारचन्द्रज्योतिष, साधारणजिनस्तव आदि की भी रचना की और अपने गुरू देवप्रभसूरि के पाण्डवचरित तथा नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि के धर्माभ्युदयमहाकाव्य का संशोधन किया।३२ महामात्य वस्तुपाल के वि.सं. १२८८ के गिरनार के दो लेखों के पद्यांश२३ तथा २६ श्लोकों की वस्तुपालप्रशस्ति भी इन्होंने ही लिखी है।२४ नरेन्द्रप्रभसूरि :ये मलधारी नरचन्द्रसूरि के शिष्य एवं पट्टधर थे। महामात्य वस्तुपाल के अनुरोध एवं अपने गुरू के आदेश पर इन्होंने वि.सं. १२८० में अलंकारमहोदधि की रचना की। यह आठ तरंगों में विभक्त है । इसके अन्तर्गत कुल ३०४ पद्य हैं। यह अलंकारविषयक ग्रन्थ है । वि.सं. १२८२ में इन्होंने अपनी उक्त कृति पर वृत्ति की रचना की जो ४५०० श्लोक परिमाण है।३५ इसके अतिरिक्त विवेककलिका, विवेकपादप, वस्तुपाल की क्रमश: ३७ और १०४ श्लोकों की प्रशस्तियां तथावस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि.सं. १२८८ के एक शिलालेख का पद्यांश भी इन्हीं की कृति है। हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास १७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212271
Book TitleHarshapuriyagaccha Aparnam Maldhari Gaccha ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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