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________________ दर्शन दिग्दर्शन को थोड़ा छोड़िए और श्वास को मन्द कीजिए।' दांत निकलवाना होता है तो भी मुंह को ढीला छोड़ने की बात कही जाती है। रक्तचाप बढ़ने की स्थिति में कायोत्सर्ग के द्वारा उसे सन्तुलित किया जा सकता है। एक बार डाक्टर घोड़ावत ने मेरा रक्तचाप देखकर कहा'ब्लड प्रेसर अधिक है।' मैं बोला-'डाक्टर घोड़ावत ! थोड़ी देर ठहरो।' मैने कायोत्सर्ग किया। पांच-सात मिनट बाद पुनः डाक्टर ने देखा। रक्तचाप में कमी आ गई। यह कायोत्सर्ग का प्रभाव था। तनाव इस सदी की प्रमुख समस्या है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब लोग तनाव में रहते हैं। थोड़ी-सी प्रतिकूलता तनाव पैदा कर देती है। काम का बोझ बढ़ते ही तनाव हो जाता है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसका डाक्टरों के पास उपचार भी नहीं है । कायोत्सर्ग तनाव की समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है। नियमित रूप से कायोत्सर्ग किया जाए तो तनाव को पैदा होने का अवकाश ही नहीं मिलेगा। कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर और मन - दोनों को स्वस्थ रखा जा सकता है । कायोत्सर्ग आत्म साधना का मन्त्र है, वैसे ही स्वास्थ्य-साधना का भी मन्त्र है। पर अधिसंख्य लोग विसर्जन या अस्वीकार की बात समझते नहीं हैं। अस्वीकार की शक्ति असीम है। जो लोग इस शक्ति का उपयोग करना जानते हैं, वे उदाहरण बन जाते हैं। एक धनाढय सेठ के मन में महत्त्वाकांक्षा जागी। उसने शहर के विशिष्ट लोगों को आमन्त्रित किया। उनके साथ ही एक प्रतिष्ठा प्राप्त पंडित को बुलाया। उनके आने से पहले उसने स्वर्ण मुद्राओं की एक चौकी बनवाई। चौकी को वस्त्र से आच्छादित कर दिया। उसके बाद पंडित को वहां उपस्थित कर सेठ बोला - आज मैं अपने शहर के प्रतिष्ठित पंडितजी को अपनी ओर से एक भेंट देना चाहता हूं।' यह कहकर उसने स्वर्णमुद्राओं की चौकी से वस्त्र हटा लिया। देखने वाले चकित रह गए। इतना बड़ा दान ! इतनी उदारता ! शहर के लिए बड़े गौरव की बात है, जहां विद्वानों का इतना सम्मान होता अपनी प्रशंसा में कहे गए शब्द सुनकर सेठ का अहं आसमान को छूने लगा। वह मौन नहीं रह सका। उसने कहा-'पंडितजी ! आपकी उम्र मेरे से बहुत अधिक है। क्या आपको कोई इतना बड़ा दान करने वाला मिला ?' सेठ के शब्दों से पंडित का स्वाभिमान आहत हुआ। उसने अपनी जेब में हाथ डाला। दो रुपये निकाले । उन्हें ) १४१ ] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212259
Book TitleSwasthya ke Mantradata Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanadhipati Tulsi
PublisherZ_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf
Publication Year1998
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size451 KB
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