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________________ दर्शन दिग्दर्शन भाव व्युत्सर्ग के तीन प्रकार हैं - १. कषाय-व्युत्सर्ग - क्रोध आदि का विसर्जन । २. संसार-व्युत्सर्ग - परिभ्रमण का विसर्जन। ३. कर्म-व्युत्सर्ग -- कर्मपुदगलों का विसर्जन। स्वास्थ्य के संदर्भ में सभी प्रकार के व्युत्सर्ग उपयोगी हैं। पर प्रस्तुत आलेख में शरीर-व्युत्सर्ग की चर्चा अभिप्रेत है। काय शब्द शरीर का पर्यायवाची है। शरीर व्युत्सर्ग के स्थान पर काय-व्युत्सर्ग अथवा कायोत्सर्ग शब्द अधिक प्रचलित है। कायोत्सर्ग शरीर और आत्मा - दोनों की स्वस्थता में साधक है। इसलिए इसका विशेष मूल्य है। कठिन है काय का उत्सर्ग मन चंचल होता है या चित्त की चंचलता ही मन है। इस अवधारणा के आधार पर मन की चंचलता के निरोध की बात कठिन प्रतीत होती है। बहुत लोग कहते हैं कि वे शरीर को हिलाए-डुलाए बिना घंटों तक बैठ सकते हैं। वाणी का संयम भी कर सकते हैं। किन्तु मन को पकड़ पाना मुश्किल है। मन बिना बागुरा का घोड़ा है। बिना पांख वाला यायावर है। इसकी गति अप्रतिहत है। पहाड़, नदी, समुद्र आदि कोई भी इसकी गति को रोक नही सकते। यह साधारण आदमी को ही नहीं, बड़े-बड़े योगियों को भटका देता है। भगवान महावीर के सामने मन, वचन और काययोग के निरोध का प्रश्न आया। महावीर ने कहा – 'मन का उत्सर्ग कठिन है, पर काय का उत्सर्ग उससे भी कठिन है। वीतराग अयोग की साधना करता है तो सबसे पहले मन योग का निरोध करता है, फिर वचन योग का निरोध करता है, फिर उच्छास-निश्वास का निरोध करता है। उसके पश्चात काय योग का निरोध कर अयोगी बनता है। अयोगी बनते ही शरीर से उसका सर्वथा सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है।' उक्त विवेचन के आधार पर यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनोयोग और काययोग के निरोध की प्रक्रिया के बारे में एकांगी दृष्टिकोण अपूर्णता का सूचक है। सापेक्ष दृष्टि से विचार किया जाए तो किसी के लिए मन का निरोध कठिन हो सकता है और किसी के लिये काय का निरोध। मूल बात तो यह है कि योग निरोध की साधना ही कठिन है। कठिन हो या सरल, साधना के प्रारम्भ और अन्त में कायोत्सर्ग का होना नितान्त अपेक्षित Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212259
Book TitleSwasthya ke Mantradata Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanadhipati Tulsi
PublisherZ_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf
Publication Year1998
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size451 KB
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