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________________ स्वप्न शास्त्र : एक मीमांसा ४६५ . 6+ ++ + + + ++ ++ ++ + +++++ + ++ ++++++++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ + + ++ + ++ + ++ + ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ (१) एक विशालकाय पिशाच को मारना । फल-मोहनीय कमरूपी पिशाच को नष्ट करेंगे। (२) श्वेत पुंस्कोकिल सामने स्थित है । फल-शुक्लध्यान की उच्च आराधना करेंगे। (३) रंग-बिरंगा पुंस्कोकिल सामने है। फल-विविध ज्ञान से भरे द्वादशांगी रूप श्र तज्ञान की प्ररूपणा करेंगे । (४) दो रत्न मालाएँ। फल-सर्वविरति एवं देशविरति धर्म की प्ररूपणा करेंगे। (५) श्वेत गायों का समूह । फल-श्वेत वस्त्रधारी श्रमण-श्रमणी शिष्य परिवार होगा। (६) विकसित फूलों वाला पद्म सरोवर । फल-देवगण सदा सेवा में उपस्थित रहेंगे। (७) महासमुद्र को हाथों से तैरना। फल-संसार सागर को पार करेंगे। (८) जाज्वल्यमान सूर्य का प्रकाश फैल रहा है। फल-केवल ज्ञानालोक से स्वप्न को प्रकाशित करेंगे। (E) मानुषोत्तर पर्वत को अपनी आँतों से आवेष्टित करना । फल-समूचे लोक में कीति व्याप्त हो जायेगी। (१०) मेरु पर्वत पर आरोहण करना । फल-छिन्न प्रायः धर्म-परम्परा की पुनः स्थापना करेंगे। इन स्वप्नों के समय के सम्बन्ध में दो मान्यताएं मिलती हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये स्वप्न शूलपाणि यक्ष के उपद्रव के बाद उसी अन्तिम रात्रि में आये, जबकि एक मान्यता है कि अन्तिम राइयंसि का अर्थ छमस्थकाल की अन्तिम रात्रि से होना चाहिए।" अगर स्वप्न-शास्त्र की दृष्टि से विचार करें तो इनका समय छद्मस्थकाल की अन्तिम रात्रि भी उपयुक्त लगती है, क्योंकि सभी स्वप्नों के संकेत भगवान की वीतराग दशा और तीर्थस्थापना से सम्बन्धित है। अतः कालसामीप्य की दृष्टि से वह छमस्थकाल की अन्तिम रात्रि होती है। खैर इस विवाद में न पड़कर हमें तो स्वप्नों के सम्बन्ध में ही समझना है कि स्वप्नों के अर्थ किस प्रकार विचित्र-विचित्र होते हैं। उक्त स्वप्नों के अर्थ उत्पल निमित्तज्ञ ने लोकों को बताये, कहते हैं चौथे स्वप्न का अर्थ उसकी समझ में नहीं आया तो उसका अर्थ स्वयं भगवान महावीर ने स्पष्ट किया। बुद्ध के पांच स्वप्न स्वप्नों की चर्चा में हमारे समक्ष तथागत बुद्ध के पांच स्वप्न भी आते हैं । बुद्ध भी अपने साधना काल की अन्तिम रात्रि में ये पांच स्वप्न देखते हैं और उनका अर्थ शीघ्र बोधि लाभ की प्राप्ति होना कहते हैं । स्वप्न १-बुद्ध ने देखा-मैं एक महापर्यंक पर सो रहा हूँ। हिमालय का तकिया (उपधान) कर रखा है। बायाँ हाथ पूर्व समुद्र को स्पर्श कर रहा है और दायां हाथ पश्चिमी समुद्र को। पैर दक्षिण समुद्र को छू रहे हैं। अर्थ-तथागत पूर्ण बोधि (संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त करेंगे।33 स्वप्न २-एक तिरिया नामक महावृक्ष हाथ में प्रादुर्भूत होकर आकाश को छूने लगा है। अर्थ-अष्टांगिक मार्ग का निरूपण करेंगे। स्वप्न ३-काले सिर वाले श्वेत कीट घुटनों पर रेंग रहे हैं । अर्थ-श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ वर्ग चरणों में शरणागति लेंगे। स्वप्न ४-रंग-बिरंगे चार पक्षी चार दिशाओं से आते हैं, चरणों में गिरते हैं, और सब एक समान श्वेत वर्ण हो जाते हैं। अर्थ-चारों वर्ण के मनुष्य दीक्षित होंगे और निर्वाण प्राप्त करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212248
Book TitleSwapnashastra Ek Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Science
File Size2 MB
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