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महाराणाके पाटवी कुँवरको अपने दरबारमें उपस्थित देखकर ही संतुष्ट हो जाना चाहते थे । अबुलफज़लका अकबरनामे में यह उल्लेख भी अकबरकी झूठी शानको बचाने के लिए एक प्रयास मात्र था, और कुछ नहीं। जहाँगीर द्वारा भी अबुलफजलके उल्लेखपर कोई ध्यान नहीं दिया गया-स्पष्ट है अबुलफजलका कथन झूठा था।
और अबुलफजलके इस कथनको झुठलानेका दूसरा प्रयास किया सर टामस रोने', जो जहाँगीरके दरबारमें अजमेरमें उपस्थित था। वह भी जहाँगीरके कथनकी पुष्टि करता है कि महाराणा अमरसिंह और उसके बाप-दादोंने किसी बादशाहके पास हाजिर होकर ताबेदारी नहीं की।
तीसरी पुष्टि उस सम्मान और समारोहसे हो जाती है जो महाराणाके वंशके पाटवी कुँवरको पहली बार मगलदरबार में उपस्थित होनेपर जहाँगीर द्वारा किये गये थे। अकबरके लिए भी मेवाड़को अपने अधीनकर महाराणाओंको अपने वशमें करनेका वही महत्त्व था जो जहाँगीरके लिए। फिर जहाँगीर कर्णसिंहके मुगल दरबारमें उपस्थित होनेपर इतनी खुशियाँ मना सकता है तो अकबरने ऐसी खुशियां क्यों नहीं मनायीं। विचारणीय है । इस प्रकार वर्षों पूर्व विद्वान् लेखक डा० पालीवालने निर्णीत समस्याको फिरसे उभारा है। अबुलफजलकी पुष्टि करनेवाला अब तक कोई अन्य स्रोत उपलब्ध नहीं था। डा० पालीवालने पूर्वोक्त अमरकाव्य ग्रन्थको ही अबुलफजलकी पुष्टिके लिए प्रस्तुत किया है ।' अमरकाव्य महाराणा राजसिंहके कालमें विरचित मेवाड़ के इतिहाससे सम्बधित उतना ही प्रामाणिक ग्रंथ है, जितनी राजप्रशस्ति । इसे राजप्रशस्ति महाकाव्यका ही पूर्वार्द्ध कह दिया जाय तो अनुचित नहीं होगा। उन्होंने अमरकाव्यसे निम्नलिखित अंश इसकी पुष्टिके उद्धृत किया है
अकब्बरस्य पार्नेऽगादमरेशः कुमारकः । यदा तदा मानसिंहो डोडियाभीममुख्यकैः ॥७७ अमरेशस्य वीरैः सह वार्ता क्रतौ लघु । कांश्चिद्वार्तामकथयत्तदा भीमोऽवदत्क्रुधा ।।७८ भवांस्तत्र समायातु मया घोररणे तदा ।
जुहारस्तत्र कर्तव्यः पूर्वोक्तं वाक्यमित्यहो ॥७९ आश्चर्य होता है विद्वान् लेखकने इस श्लोकसे अमरसिंहका अकबरके पास भेजा जाना या उसका स्वयं अकबरके दरबारमें उपस्थित होना अर्थ कैसे लगा लिया। वैसे भी जिस रूप में अपने सोचे हुए उद्देश्यकी सिद्धिके लिए उन्होंने पूर्वाग्रह सहित बिना पूर्वापरका प्रसंग उद्धृत किये हुए, इन श्लोंकोको उद्धृत किया है अतः यह कोई विशेष अर्थ नहीं रखता है। और यदि कोई अर्थ निकाला भी जाय तो कमसे कम वह अर्थ तो नहीं ही निकलेगा जो उन्होंने निकाला है ।
ये श्लोक हल्दी घाटीके युद्ध में महाराणा प्रताप और मानसिंहमें होनेवाली सीधी टक्करकी वेलासे सम्बन्धित हैं । महाराणा प्रतापके साथ भीमसिंह डोडिया मानसिंह के सामने खड़ा है । यह भीमसिंह डोडिया वही सरदार है जिसने उदयसागर तालाबपर मानसिंहके अपमानकी दुर्घटनाके समय मानसिंह और महाराणा प्रतापके मध्य होनेवाली बातचीत में राजकुमार अमरसिंहके साथ दौत्यकर्म किया था। और जिसने स्वयं ही मानसिंहकी गर्वोक्तिका उत्तर देते हुए कहा था कि यदि वह मानसिंह मेवाड़से निपटना ही चाहता है तो उसके साथ दो-दो हाथ अवश्य होंगे। यदि वह अपने ही बलपर आक्रमण करने आया तो उसका १. शोधपत्रिका--वर्ष १९, अंक ४ पृ० ४४-४९ ।
३२८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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