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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
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के निमन्त्रण पर उक्त आचार्य ने उदयपुर में चातुर्मास किया। चातुर्मास समाप्त होने पर एक रात दल-बदल महल में विश्राम किया, महाराणा जगतसिंह नमस्कार करने गये एवं आचार्य के उपदेश से निम्न बातें स्वीकार की
१. पीछोला तालाब एवं उदयसागर में मछलियों को कोई नहीं पकड़े । २. राजतिलक के दिन जीवहिंसा बन्द रखी जावे । ३. जन्ममास एवं भाद्रमास में जीवहिंसा बन्द रखी जावे ।
४. मचीद दुर्ग पर राणा कुम्भा द्वारा बनवाये गये जैन-चैत्यालय का पुनरुद्धार कराया जावे।' राणा राजसिंह
राणा राजसिंह (वि०सं० १७०६ से १७३७) के समय में राजसमन्द का निर्माण हुआ था ।उसी के साथ राणा के दीवान दयालशाह ने दयालशाह का किला नामक बावन जिनालय का एक भव्य देरासर बनवाया। इस सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि राजसमन्द की पाल जैसे ही तैयार होती, पानी आने पर टूट जाती; ऐसी स्थिति में मन्दिर की प्रतिष्ठा की अनुमति को राणा टालते रहे । अन्त में राणा राजसिंह ने दयाल शाह की पत्नी पाटमदे (पाटमदेवी) जो धर्मात्मा एवं सती थी उससे पाल की नींव रखवाई एवं रात-दिन काम करवा कर पाल बंधवायी जो चातुर्मास की वर्षा में भी नहीं टूटी। तत्पश्चात् राणा ने इस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाने की अनुमति दी तदनुसार वि०सं० १७३२ वैसाख सुद ७ को विजयगच्छ के भट्टारक विनयसागरसूरि की निश्रा में एवं सांडेराव गच्छ के म. देवसुन्दरसूरि की उपस्थिति में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई। महाराणा राजसिंह के समय का एक आज्ञापत्र कर्नल टॉड ने अंग्रेजी में प्रकाशित किया। इससे भी राणा राजसिंह जी की जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा प्रकट होती है। यह आज्ञा (फरमान) यति मान के उपदेश से जारी किया गया था। इसमें मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं
"महाराणा श्री राजासह, मेवाड़ के दस हजार गांवों के सरदार मंत्री और पटेलों को आज्ञा देता है, सब अपने-अपने पद के अनुसार पढ़ें
१. प्राचीन काल से जैनियों के मन्दिरों और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा में जीव-वध नहीं करे, यह उनका पुराना हक है।
२. जो जीव नर हो या मादा, वध होने के अभिप्राय से इनके स्थान से गुजरता है, वह अमर हो जाता है।
३. राजद्रोही, लुटेरे और कारागृह से भागे हुए महाअपराधी को भी, जो जैनियों के उपास रे में शरण ग्रहण कर लेगा, उसको राज्य कर्मचारी नहीं पकड़ेगा।
४. फसल में कूची (मुठी), कराना की मुट्ठी, दान की हुई भूमि, धरती और अनेक नगरों में उनके बनाये हुए उपासरे कायम रहेंगे।
५. यह फरमान यति मान की प्रार्थना पर जारी किया गया है, जिनको १५बी वा धान की भूमि के और २५ बीघे मालेटी के दान किये गये हैं । नीमच और निम्बाहेड़ा के प्रत्येक परगने में भी हर एक यति को इतनी ही भूमि दी गई है । अर्थात् तीनों परगनों में धान के कुल ४५ बीघे और मालेटी के ७५ बीघे ।
इस फरमान को देखते ही भूमि नाप दी जावे व दे दी जाय और कोई मनुष्य जतियों को दुःख नहीं दे, बल्कि उनके हकों की रक्षा करे। उस मनुष्य को धिक्कार है जो उनके हकों का उल्लंघन करता है। हिन्दू को गौ और मुसलमान को सूअर और मुदारी की कसम है । संवत् १७४६ (?) महासुदी ५, ई०स० १६६३ (?) । शाह दयाल मंत्री।"
१. राजपूताने के जैन वीर, अयोध्याप्रसाद गोयल, पृ० ३४६. २. एनल्स एण्ड एण्टौक्यूटीज आफ राजस्थान-कर्नल टाड, परिशिष्ट, ५, पृ० ६९७.
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