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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास. अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा इस पट्टावली के अंतिम चार आचार्यों का जो तिथिक्रम प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है--
मुनिसिंहसूरि द्वारा वि.सं. १४९९ कार्तिक सुदी ५ सोमवार को प्रतिष्ठापित भगवान् शांतिनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी प्रकार मुनिसिंहसूरि के शिष्य शीलरत्नसूरि द्वारा वि.सं. १५०६ से वि.सं. १५१२ तक प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमाएं मिलती हैं। शीलरत्नसूरि के शिष्य आनन्दप्रभसूरि द्वारा वि.सं. १५१३ से वि.सं. १५२७ तक प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमाएं प्राप्त होती है। आनन्दप्रभसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा वि.सं. १५२३ और वि.सं. १५४२ में प्रतिष्ठापित २ जिन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ही मुनिरत्नसूरि के शिष्य आनन्दरत्नसूरि का भी उल्लेख प्राप्त होता है। उनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ तीर्थंकर प्रतिमाएँ मिली हैं, जो वि.सं. १५७१ से वि.सं. १५८३ तक की है। उक्त बात को तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है--
सोमतिलकसूरि
सोमचंद्रसूरि
गुणरत्नसूरि
मुनिसिंहसूरि (वि.सं. १४९९) १ प्रतिमालेख शीलरत्नसूरि (वि.सं. १५०६-१५१२) ५ प्रतिमालेख आनन्दप्रभसूरि (वि.सं..१५१३-१५-२७) ६ प्रतिमालेख
मुनिरत्नसूरि (वि.सं. १५२३-१५४२) २ प्रतिमालेख
आनन्दरत्नसूरि (वि.सं. १५७१-१५८३) ५ प्रतिमालेख श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई द्वारा प्रस्तुत आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की गुर्वावली इस प्रकार है--
मुनिरत्नसूरि
आनन्दरत्नसूरि
ज्ञानरत्नसूरि
हेमरत्नसूरि
उदयसागरसूरि
धर्महंससूरि (वि.सं. १६२० के लगभग नववाड ढालबंध के रचनाकार)
भानुभट्टसूरि
माणिक्यमंगलसूरि (वि.सं. १६३९ में अंबडरास के रचनाकार)
उक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में ६ अन्य नाम भी जुड़ जाते हैं। इस प्रकार ग्रन्थ प्रशस्ति, प्रतिमालेख तथा उपर्युक्त पट्टावली के आधार पर मुनिसागरसूरि द्वारा रचित पट्टावली अर्थात् आगमिकगच्छ की विडालंबीया शाखा की पट्टावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है--
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