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forare करते हुए साधु हो गये । आगमों आदि का विशेष अध्ययन करके आचार्य बने । उनके शिष्य उपाध्याय सुखसागरजी ने अनेकों ग्रन्थों को प्रकाशित कराया और अच्छे वक्ता थे । उनके लघुशिष्य स्वर्गीय कान्तिसा गरजी हुए। जिनके बड़े गुरुभाई मंगलसागरजी अभी पालीताना में हैं ।
जन्मतः वे सौराष्ट्र जामनगर के थे। छोटी अवस्था में ही जेनेतर कुल में जन्म लेने पर भी उ० सुखसागरजी दीक्षित शिष्य बने । अपनी असाधारण प्रतिभा से थोड़े समय में ही उन्होंने अनेक विषयों में अच्छी गति प्राप्त कर ली । हिन्दी भाषा पर उनका बहुत अच्छा अधिकार हो गया। संस्कृतनिष्ठ प्राञ्जल भाषा में उनके लिखे हुए ग्रन्थ एवं लेख विद्वद्- मान्य हुए । 'खण्डहरों का वैभव' और 'खोज की पगडंडिया' ये दो महत्वपूर्ण ग्रन्थ तो भारतोय ज्ञानपीठ जैसी प्रसिद्ध संस्था से प्रकाशित हुए । उत्तरप्रदेश सरकार ने इनकी श्रेष्ठता पर पुरस्कार भी घोषित किया । विशालभारत, अनेकान्त, भारतोय, साहित्य, नागरी प्रचारणी पत्रिका आदि हिन्दी की कई प्रसिद्ध और विशिष्ट पत्रिकाओं में आपके महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित होते रहे हैं । जिनसे हिन्दी साहित्य में आपका अच्छा स्थान बन गया । 'ज्ञानोदय' आदि कई पत्रों के दो आप सम्पादकमण्डल में भी रहे हैं ।
वक्तृत्वकला भी आपकी उच्चकोटि की थी साधारणतया बहुत से व्यक्ति अच्छे लेखक तो होते हैं वे उत्कृष्ट वक्ता नहीं होते । या वक्ता होते हैं तो अच्छे लेखक नहीं होते । पर आप दोनों में समान गति रखते थे । अर्थात् अच्छ लेखक और प्रभावशाली वक्ता दोनों रूपों में आपने अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की थी ।
पुरातत्त्व और कला के तो आप मर्मज्ञ विद्वान थे । जनसाधुओं और आचार्यों में तो इन विषयों के आप सर्वोच्च विद्वान माने जा सकते हैं। प्राचीन मन्दिरों, मूर्तियों और
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कलावशेषों के खोज एवं अध्ययन में आपकी जबरदस्त रुचि थी । मध्यप्रदेश के अनेक गांव नगरों में घूमकर आपने उपरोक्त दोनों ग्रन्थ और बहुत से महत्वपूर्ण लेख लिखे थे । छोटी-छोटी बातों पर भी आप बहुत सूक्ष्मता से ध्यान देते थे और थोड़ी सी बात को अपनी प्रतिभा के बल पर बहुत विस्तार से और बड़े अच्छे रूप में प्रगट कर सकते थे । इतिहास, पुरातत्व और कला में तो आपकी गहरी पेठ थी । जबलपुर चौमासे के समय आपने काफी प्राचीन अवशेषों ( मूर्तिखण्डों) को इधर उधर से बड़े प्रयत्न पूर्वक संग्रह किया था । जिसे मध्यप्रदेश सरकार ने अधिकार में ले लिया । राजस्थान में रहते हुए आपने उदयपुर महाराणा के इष्ट देव - एकलिंगजी पर एक बहुत महत्वपूर्ण ग्रन्थ तैयार किया था। आस-पास के नागदा आदि प्राचीन कलाधामों - जैन मन्दिरों व मूर्तियों पर आपने नया प्रकाश डाला। सैकड़ों कलापूर्ण प्राचीन अवशेषों के फोटों लिवायें । खेद है आप के घोर परिश्रम से तैयार किया हुआ एकलिंग जी वाला महत्वपूर्ण वृहद् ग्रंथ अभी तक प्रकाश में नहीं आ सका । प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति जिस किसी विषय को हाथ में लेता है उसी में अद्भुत चमत्कार पैदा कर देता है । उदयपुर रहते हुए कई कारणों से आपको आर्युवेद का अध्ययन व प्रयोग करना आवश्यक हो गया, तब आपने बहुत से असाध्य रोगियों को रोग मुक्त कर दिया था । आयु र्वेदिक सम्बन्धी अनुभूत प्रयोगों का एक संग्रह "आयुर्वेदना अनुभूत प्रयोगो" भाग १ नामक ग्रन्थ आपने गुजराती में प्रकाशित किया है। वैसे और भी कई ग्रन्थ आप प्रकाशित करने वाले थे। पर आयुष्य कर्म ने साथ नहीं दिया । 'जैन धातु प्रतिमा लेख,' नगर वर्णनात्मक हिन्दी पद्य संग्रह आदि आपके और भी ग्रन्थ प्रकाशित हैं । संगीत के भी आप अच्छे ज्ञाता थे। बुलन्द आवाज और अच्छा कंठ होने से आप 'अजित शान्ति स्तोत्र' आदि को ताल लय बद्ध बड़े अच्छे रूप में गाते थे ।
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