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________________ दार्शनिक गणितज्ञ आचार्य यतिवृषभ की कुछ गणितीय निरूपणायें ३११ क्षेत्रमान परमाणु से प्रारंभ होकर योजन और जगत श्रेणी तक जाते हैं और कालमान सूक्ष्मतम यूनिट 'समय' से प्रारंभ होकर अचलात्म [ = 84 x 103 1 X 100 वर्ष ] तक जाते हैं । इसके बाद असंख्यात या उपमा-मान आते हैं । इनका विवरण अन्यत्र उपलब्ध है । ४ ] यही नहीं, धवला ( 816 ई०) में जिन लघुगुणक ( logarithms) के सूत्रों का पल्लवन अर्द्धच्छेद एवं वर्गशलाका के रूप में हुआ है, उनके बीज इस ग्रंथ में विद्यमान हैं। बड़ी संख्याओं को सूक्ष्म रूप में व्यक्त करने में अर्द्धच्छेद एवं वर्गशलाकायें * बहुत उपयोगी हैं । यदि 29 = 6, तो 6 के अर्द्धच्छेद होंगे अर्थात् log2 b = 4, एवं यदि 224 = b, तो b की वर्गशलाका ८ होगी अर्थात् logg loga b = a विशाल संख्याओं को लघु रूप में व्यक्त करने की इस रीति के अतिरिक्त, विशाल राशियों को व्यक्त करने की एक अन्य रीति, वर्गित संवर्गित के रूप में भी उपलब्ध है । इसके अन्तर्गत जब किसी राशि पर उसी राशि की घात चढ़ा दी जाती है, तो इस रीति को वर्गित संवर्गित कहते हैं । उदाहरणार्थ, [22] 2 का द्वितीय वर्गितत संवर्गित 212 [22] संख्या सिद्धान्त - कर्म संबंधी विविध घटनाओं के परिमाणात्मक निर्वाचन हेतु आचार्य ने अनन्तों सहित संख्याओं के 21 भेदों का निरूपण किया । संख्यात, असंख्यात एवं अनन्त के रूप में किये गये इस विभाजन का एक विशिष्ट पहलू ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में संख्यात एवं अनन्त के मध्य में असंख्यात की अवधारणा तथा अनन्त से बड़े अनन्त का स्थिर करना है । ग्रंथ में विभिन्न प्रकार की राशियों के उदाहरण एवं प्राप्त करने की विधियाँ भी दी हैं । ज्यामितीय सूत्र - परम्परानुमोदित लोक संरचना का ग्रंथ होने के कारण इसमें लोक के विविध क्षेत्रों, पर्वतों का क्षेत्रफल, विविध प्रकार के सांद्रों का घनफल निकालने के प्रकरण अनेकशः आये हैं । ग्रंथ में अनेकानेक प्रकार की आकृतियों के क्षेत्रफल, वृत्ताकार आकृतियों की परिधि, वाण, जीवा आदि ज्ञात करने के सूत्र उपलब्ध हैं । सरस्वती के शब्दों में त्रिलोक प्रज्ञप्ति के पहले चार महाधिकार गणितीय सूत्रों के भंडार हैं । " लोक को वेष्ठित करने वाले विविध स्फान सदृश आकृतियों, क्षेत्रों से युक्त वातवलयों का आयतन, उनका Topological defarmation कर, धनादि रूप में लाकर ज्ञात किया गया है । यह विधि ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । इस ग्रंथ में अनुपात के सिद्धान्त का भी व्यापक प्रयोग हुआ है । -तिलोयपण्णत्ती में जम्बूद्वीप का व्यास 100000 योजन तथा परिधि 316227 योजन, 3 कोश, 128 दण्ड, 1 वितस्ति, 1 अंगुल, 3 अवसन्नासन्न ग्रंथ के अनुसार यह दृष्टिवाद से की गई बताई गयी है । किन्तु यदि / 10 कुछ कम प्राप्त होता है । क्या यह त्रुटि है ? यह परिकलन, + ♚ =*+22/^=N^ Jain Education International X 23213 - ख ख ...... दिया गया है। 105409 उद्धृत सूक्ष्मतम मान है। का वास्तविक मान लेकर इस प्रश्न का समाधान यह गणना परिधि / 10 व्यास सूत्र से इसकी गणना की जाये, तो परिधि का मान करते हुए प्रो. गुप्ता' ने स्थिर किया कि जहाँ x 2 लगभग मान के आधार पर किया गया है । 2 a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211162
Book TitleDarshanik Ganitagnya Acharya Yativrushabh ki Kuch Ganitiya Nirupanaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherZ_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf
Publication Year1989
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size418 KB
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