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________________ जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप | 311 000000000000 000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन का पालक मुक्त होता है।५६ जो दीर्घदर्शी लोक के स्वरूप को जानकर विषय-भोगों को त्याग देता है वह मुक्त होता है / 50 जो दृढ़तापूर्वक संयम का पालन करता है वह मुक्त होता है। जो लोभ पर विजय प्राप्त कर लेता है वह मुक्त होता है / 56 शुद्ध चारित्र का आराधक सम्यक्त्वी मुक्त होता है। मुषाभाषा का त्यागी मुक्त होता है। काम-भोगों में अनासक्त एवं जीवन-मरण से निष्पृह मुनि ही मुक्त होता है / अन्त-प्रान्त आहार करने वाला ही कर्मों का अन्त करके मुक्त होता है। विषय-भोग से विरत जितेन्द्रिय ही मुक्त होता है।६४ शुद्ध धर्म का प्ररूपक और आराधक मुक्त होता है। रत्नत्रय का आराधक मुक्त होता है।६६ शल्यरहित संयमी मुक्त होता है। त्रिपदज्ञ ज्ञानी (हेय, जय और उपादेय का ज्ञाता) त्रिगुप्तसंवृत जो जीव-रक्षा के लिए प्रयत्नशील है वह मुक्त होता है।६८ शुद्ध अध्यवसाय वाला, मानापमान में समभाव रखने वाला और आरम्भ-परिग्रह का त्याग करने वाला अनासक्त विवेकी व्यक्ति ही मुक्त होता है / जिस प्रकार पक्षी पांखों को कम्पित कर रज दूर कर देता है उसी प्रकार अहिंसक तपस्वी भी कर्मरज को दूर कर देता है। जिस प्रकार धुरी टूटने पर गाड़ी गति नहीं करती उसी प्रकार कर्ममुक्त चतुर्गति में गति नहीं करता। शुद्धाशय स्त्री-परित्यागी मुक्त होता है / 72 / जो संयत विरत प्रतिहत प्रत्याख्यात पापकर्म वाला संवृत एवं पूर्ण पण्डित है वह मुक्त होता है। 3 जो सुशील, सुब्रती, सदानन्दी सुसाधु होता है वह मुक्त होता है / 74 जो घातिकर्मों को नष्ट कर देता है वह मुक्त होता है। जो हिंसा एवं शोक संताप से दूर रहता है वह मुक्त होता है। जो आत्म-निग्रह करता है वह मुक्त होता है। जो सत्य (आगमोक्त) आज्ञा का पालन करता है वह मुक्त होता है।७८ ज्ञान और क्रिया का आचरण करने वाला मुक्त होता है। संयम में उत्पन्न हुई अरुचि को मिटाकर यदि कोई किसी को स्थिर करदे तो बह शीघ्र ही मुक्त होता है।८० तेरहवें क्रियास्थान-ऐपिथिक क्रिया वाला अवश्य मुक्त होता है।" सावद्य योग त्यागी अणगार ही मुक्त होता है / 82 जो परमार्थ द्रष्टा है वह मुक्त होता है / 83 लघु और रुक्ष आहार करने वाला मुक्त होता है / 64 जो उग्रतपस्वी उपशान्त-दान्त एवं समिति-गुप्ति युक्त होता है वह मुक्त होता है / 85 जो आगमानुसार संयमपालन करता है वह मुक्त होता है।८६ जो सम्यग्दृष्टि सहिष्णु होता है वह मुक्त होता है। जिस प्रकार अनुकूल पवन से नौका पार पहुंचती है उसी प्रकार उत्तम भावना से शुद्धात्मा मुक्त होता है / आचार्य और उपाध्याय की मुक्ति जो आचार्य-उपाध्याय शिष्यों को अग्लान भाव (रुचिपूर्वक) से सूत्रार्थ का अध्ययन कराते हैं और अग्लान भाव से ही उन्हें संयम-साधना में सहयोग देते हैं / वे एक, दो या तीन भव से अवश्य मुक्त होते हैं /
SR No.211051
Book TitleJainagamo me Mukti marg aur Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Nine Tattvas
File Size3 MB
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