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: ५५१ : जैन साहित्य में गाणितिक संकेतन
घटाना होता था उसके बाद लिखा जाता था । यथा
का आशय जघन्य युक्त असंखेय - १ से है । यहाँ पर २ का आशय जघन्य युक्त असंखेय से है । 'अर्थदृष्टि' में इसी प्रकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं ।" यथा - यदि ला५५४१३ का आशय ल X ५ × ४ X ३ अर्थात् ६० लाख से है और १ लाख इस राशि में से घटाया जावे तो शेषफल को इस प्रकार लिखते हैं
골드
ल
श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
'त्रिलोकसार' (दशवीं शताब्दी का जैन ग्रन्थ) में भी घटाने के लिए इसी प्रकार का संकेत मिलता है । इसमें लिखा है कि मूलराशि के ऊपर घटाई जाने वाली संख्या लिखो और उसके आगे पूछड़ी का सा आकार बिन्दी सहित करो जैसे २०० में से २ घटाने के लिए इस प्रकार लिखा है—
2 200
८
घटाने के लिए
में से २ घटाने के लिए इस प्रकार लिखा है -
घटाने के लिए उपरोक्त चिन्ह
१० ५/४/३
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संकेत भी जैन ग्रन्थों में प्रयोग किया गया है । यथा १ करोड़
को भर
होता है।"
कहीं-कहीं घटाने के लिए • संकेत का भी प्रयोग किया गया है। पं० टोडरमलजी ने इस संकेत का प्रयोग इस प्रकार किया है—
ई० पू० तीसरी शताब्दी में भी दृष्टिगोचर
४ अर्थसंदृष्टि, पृष्ठ ४; तिलोयपण्णत्ति, भाग २, पृष्ठ ६०६, ७१७
५
वही, पृष्ठ २०
६ त्रिलोकसार, परिशिष्ट, पृष्ठ २
७
अर्थसंदृष्टि, पृष्ठ
गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा, भारतीय प्राचीनलिपि माला १९५६, प्लेट १
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