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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ॥
चिन्तन के विविध बिन्दु : ५७४ :
परन्तु उन्होंने अपना दीक्षा का विचार पक्का कर लिया। विक्रम सं० १९२० में भावी पूज्य श्री चौथमलजी महाराज और मुनिश्री रतनचन्दजी महाराज का चातुर्मास फलौदी मारवाड़ में था। तब कंजार्डा का श्रीसंघ पहुँचकर मुनिश्री से निवेदन किया कि चातुर्मास के पश्चात् आप विहार कंजार्डा की तरफ कराने की कृपा करें। कारण श्री रतनचन्दजी महाराज का शेष सारा कुटुम्ब दीक्षा ग्रहण करने वाला है । मुनिश्री ने विनती स्वीकार की। चातुर्मास के पश्चात् विहार करते हए कंजार्डी पधारे। उन पधारने वाले मुनिराजों में श्रीमद जैनाचार्य शिवलालजी महाराज, श्री राजमलजी महाराज, भावी पूज्य श्री चौथमलजी महाराज, श्री रतनचन्दजी महाराज और श्री देवीचन्दजी महाराज आदि आठ मुनिराज थे। इनके अतिरिक्त श्री रंगूजी महासतीजी महाराज श्री नवला जी महासतीजी महाराज और श्री ब्रजजी महासती जी महाराज का शुभ आगमन भी कंर्जाडा में हुआ।
पौष शुक्ला छठ सं० १९२० के पवित्र दिन श्रीमती राजकंवर बाई ने अपने तीनों पुत्रों (जवाहरलालजी, हीरालालजी नन्दलालजी) को दीक्षा दिलवाई । और स्वयं भी दीक्षित हो गई। पूज्य श्री ने राजकवर बाई को दीक्षा देकर महासतीजी श्री नवलाजी महाराज की शिष्या घोषित की।
इसी प्रकार मुनि जवाहरलालजी महाराज को मुनि श्री रतनचन्दजी के शिष्य और मुनिश्री हीरालालजी महाराज, मुनिश्री नन्दलालजी महाराज को, मुनिश्री जवाहरलालजी महाराज के शिष्य घोषित किये।
जैसेविद्वद्वर पं० श्री राजमलजी महाराज के शिष्य
श्री रतनचन्दजी महाराज
श्री जवाहरलालजी महाराज
श्री हीरालालजी महाराज
श्री नन्दलालजी महाराज
मुनिश्री माणकचन्दजी महाराज मुनिश्री चेनरामजी महाराज मुनिश्री लक्ष्मीचन्दजी महाराज
आगे की शिष्य-परम्परा संलग्न चार्ट में देखें।
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