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________________ के उदय से औदारिक आदि वर्गणा के पुद्गलों की औदारिकादि शरीर के रूप में विशेष रचना होती है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार-बद्ध पुद्गलों के परस्पर जतुकाष्ठन्याय से रचना-विशेष को संघात कहते हैं। यह पुद्गलविपाकी कर्म है, क्योंकि पुद्गल रचना के आकार-विशेष के द्वारा इसका परिपाक होता है। आनुपूर्वीनामकर्म के अर्थ के विषय में दो परम्पराएं प्रचलित हैं। एक के अनुसार विग्रहगति में आत्म प्रदेशों के रचनाक्रम को, जोकि पूर्व-शरीर के अनुसार होता है, करने वाले कर्म को अनुपूर्वी नामकर्म कहा है। दूसरी परम्परा के अनुसार-जिसके उदय से निर्माणनामकर्म के द्वारा निर्मापित बाहु आदि अंग तथा अंगुली आदि उपांगों की रचना की परिपाटी होती है, उसे आनुपूर्वीनामकर्म कहा जाता है।' पूर्वजन्म के शरीर के अनुसार विग्रहगति में आत्म-प्रदेशों की आकार-रचना तो आनुपूर्वीनामकर्म के द्वारा होती ही है, पर उसके पश्चात् भी वर्तमान शरीर के निर्माण में पूर्व-शरीराकार का प्रभाव भी आनुपूर्वीनामकर्म के माध्यम से कार्य करता है। उपधातनामकर्म शरीर के अंगोंपांगों के उपघात का कारण है, उसकी भी पुनरावृत्ति दूसरे जन्म में यथावत् हो सकती है। इस प्रकार विग्रहगति के पश्चात् भी यदि आनुपूर्वीनामकर्म के द्वारा वर्तमान शरीर के निर्माण में योगदान मिलता है, तो पूर्व-शरीर के चिह्नों की पुनर्जन्म में भी विद्यमानता संभव हो जाती है। मत शरीर का अधिग्रहण : पूर्वजन्म की घटनाओं में कुछ ऐसी घटनायें भी सामने आई हैं, जिनमें एक मृत व्यक्ति के शरीर में दूसरे मृत व्यक्ति की आत्मा प्रवेश कर जाती है और वह मृत व्यक्ति पुनः जीवित हो जाता है, पर अब वह अपने आपको दूसरी आत्मा के रूप में बताता है। जैसेजसवीर नामक बालक की घटना में घटित हुआ। रसुलपुर नामक गांव में गिरधारीलाल जाट का पुत्र जसवीर लगभग साढ़े तीन वर्ष की आयु में चेचक की बीमारी में सन् १९५४ के गर्मी के मौसम (अप्रैल-मई) में मृत्यु को प्राप्त हुआ। मृत बच्चे की अन्तक्रिया रात्रि का समय होने से प्रातःकाल तक स्थगित रखी गई । मृत्यु के कुछ घण्टों बाद ही शव में थोड़ी-सी हलचल नजर आई। कुछ क्षणों पश्चात् लड़का पुनः जीवित हो गया। पर अब तक बोलने की स्थिति में नहीं था । कुछ दिनों बाद जब वह बोलने की शक्ति को प्राप्त कर चुका था, उसने बताया कि—मैं वेहेदी ग्राम के निवासी शंकर नामक ब्राह्मण का पुत्र हूं और इसलिए मैं जाटों के हाथ का खाना नहीं खाऊंगा। जसवीर ने यह भी बताया कि पिछले जन्म में उसकी मृत्यु तब हुई थी जब वह दो बैलों के रथ पर किसी बरात में जा रहा था जहां उसे विषैली मिठाई दे दी गई थी। वह मिठाई उसे उस व्यक्ति ने खिलाई थी जिसको उसने कुछ धन ऋण में दिया था। जब वह रथ में बैठकर जा रहा था, अचानक उसे चक्कर आये, वह रथ से गिर गया और उसके सिर में चोट आई जिससे कुछ घण्टों बाद उसकी मृत्यु हुई। जसवीर द्वारा बताई गई इन बातों को गिरधारीलाल ने छिपाने की कोशिश की, पर उसके द्वारा ब्राह्मण के हाथों बनाया हआ खाना खाने के आग्रह के कारण वह बात ब्राह्मणों में फैल गई। लगभग तीन वर्ष पश्चात् यह बात किसी माध्यम से वेहेदी गांव तक पहुंची। बालक जसवीर द्वारा बताई गई बातें वेहेदी गांव के शंकरलाल त्यागी नामक ब्राह्मण के पुत्र शोभाराम के जीवन से हबह मिलती थी। शोभाराम की मृत्यु सन् १९५४ में मई महीने में ठीक उसी प्रकार रथ में से गिर जाने के कारण सिर में चोट आने से हुई थी, जैसे बालक १. "संघातनामकर्म-औदारिकादि शरीरनामकर्मण औदारिका दिवर्गणा गृह्यन्ते, बन्धनामकर्मोदयाच्च गृह्यमाणपुद्गला: गृहीतपुद्गलः सह समौल्यन्ते, संघातनामकर्मोदयात्-चौदारिका दिपुद्गलानामौदारिकादिशरीरविशेषरचनासहतिर्भवति ।" -बंधविहाण, खण्ड-६, पृ० ४४ २, "बद्धानामपि च पुद्गलानां परस्पर जतुकाष्ठन्यायेन पुद्गलरचनाविशेष: सघात: संयोगेनात्मन: गृहीतानां पुद्गलानां यस्य कर्मण उदयाद् औदारिकादि तनुविशेष रचना भवति, तत् संघातनामकर्म, पुद्गलरचना विपच्यत इति पुद्गल विपाकीत्युच्यते ।" ३. “यत्पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयात् भवति, तदनुपूर्व्यनाम । यदा छिन्नायुर्मनुष्यस्तिर्यग् वा पूर्वेण शरीरेण वियुज्यते, तदेव नरक-भवं प्रत्यभिमुखस्य तस्य पूर्वशरीरसंस्थानानिवृत्तिकारण विग्रहगतादेति, तन्नरकगति प्रायोग्यानपूर्वव्यनाम । एवं शेषेष्वपि योज्यम् । ननु च तन्निर्माणनामकर्मसाध्यं फलं, नानपूर्व्यनामोदयकृतग ? नैष दोषः, पूर्वायुरुच्छेदसमकाल एवं पूर्वशरीरनिवृत्ता निर्माणनामोदयो निवर्तते तस्मिन्निवृत्तेऽष्ट विधकर्म तैजसकार्मणशरीरमसंबंधिन आत्मनः पूर्वशरीरसंस्थाना विनाशकारणमानुपूर्व्यनामोदयमुपैति, तस्य कालौ विग्रहगतौ जधन्येनैकः समयः, उत्कर्षेण वयः समय:, ऋजुगतौ तु पूर्वशरीराकारविनाशे सति उत्तरशरीर-योग्यपूदगलग्रहणान्निर्माणनामकर्मोदय व्यापारः।" इति । याऽव निर्माणनामकर्मण उदय निवृत्तिरुक्ता सा चिन्त्या निर्माणकर्मणो ध्रुवोदयत्वात् । -तत्त्वार्थराजवात्तिक; बंधविहाणं, खण्ड ६, १०४७ ४. (क) “यदुदयाद् निर्माण नामकर्मणा निर्मापितानां बाहु-प्रत्यंगनां अंगुल्याद्य पांगना रचना निवेशपरिपाटी–उभयतो बाहु कटे रधो जानुनी इत्यादि, अत्रैव स्थाने इदं विनेष्टव्यमित्येवंरूपा जायते तदानुपूर्वीनाम ।" -बंधविहाणं, खण्ड ६, पृ०४७ (ख) "जस्स कम्मसुदएण परिच त्तपुचसरीस्स अ (ग) हिदु उत्तरसरीरस्स जीवपदेसाणं रचणापरिवाडी होदि तं कम्ममाण पुर्वीणाम ।'-धवलाकार । "धवलाकारस्तु विग्रहगता आत्मप्रदेशानां रचनाक्रममानुपूर्वीनाम प्रचक्षते । -बंधविहाणं, खण्ड ६, पृ०४७ ५. "शरीररांगानामुपांगानां च यथोक्तानां यस्य कर्मण उदयात् परैरनेकधोपधातः क्रियते, तदुपघातनामेति ।" -तत्त्वार्थसूत्रवृत्ति; बंधविहाणं, खण्ड १, पृ०४८ २० आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210668
Book TitleJain Darshan ka Saiddhantik Manyatao ke Sandarbh me Punarjanma ke Vaigyanik Adhyayan ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Philosophy
File Size2 MB
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