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जाता है । पुनर्जन्म के विपक्षियों द्वारा सबसे प्रबल तर्क यही दिया गया है कि पुनर्जन्म की कोई स्मृति हमें नहीं है। प्रिंगल-पेटिसन ने डॉ० मेकटेगार्ट की इस मान्यता को कि “आत्मा एक शाश्वत द्रव्य है जिसमें कालिक अस्तित्व सदा अमर बना रहता है; समर्थ तर्काधारित मानने से इसलिए इन्कार किया है कि पूर्वजन्म की स्मृति के अभाव में आत्मा की सततता की अनुभूति नहीं होती। यदि पूर्वजन्म की स्मृति वास्तविक तथ्य के रूप में प्रमाणित हो जाती है, तो पुनर्जन्म का सिद्धान्त स्वत: सिद्ध हो जाता है। डा० कलघटगी ने पूर्वजन्म की स्मृति के प्रमाण को पुनर्जन्म की मान्यता को सिद्ध करने के लिए यथार्थ माना है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पूर्वजन्मपरक स्मृति की वास्तविकता अस्तित्ववादी (आस्तिक) दर्शन के लिए एक ऐसा सबल एवं प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाता है जिसके लिए फिर तर्क या अनुमान की आवश्यकता नहीं रह जाती।
वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने पर "पुनर्जन्मवाद" का प्रामाण्य दो बातों पर आधारित हो जाता है१. प्रथम तो पूर्वजन्म-स्मृति की घटनाएं वास्तविक हैं या नहीं—इसे प्रमाणित करना।
२. यदि ये घटनाएं वस्तुत: ही घटित हैं, तो इन घटनाओं की व्याख्या करने में पुनर्जन्मवाद की परिकल्पना (hypothesis) ही केवल सक्षम है, इसे प्रमाणित करना।
___ यदि इन दोनों बातों को सिद्ध कर दिया जाता है, तो आत्मा का स्वतन्त्र एवं शाश्वत अस्तित्व एक वैज्ञानिक तथ्य के रूप में स्थित हो जाता है। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में :
सर्वप्रथम तो हमें इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि पूर्वजन्म-स्मृति की घटनाओं की वास्तविकता असन्दिग्ध है या नहीं। सौभाग्य से पिछले १५ वर्षों से इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है। विश्व के वैज्ञानिकों का ध्यान काफी अर्से से इन घटनाओं की ओर खिच चुका था। विश्व में अनेक स्थानों पर परामनोविज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति से शोध कार्य करने के लिए जो शोघ-संस्थान स्थापित हुए हैं, उनमें इन पूर्वजन्म-स्मृति की घटनाओं का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन किया जा रहा है। पैसिलवेनिया विश्वविद्यालय, क्लार्क विश्वविद्यालय (बोरसेस्टर, मेसेच्युसेट्स), स्टेण्डफोर्ड विश्वविद्यालय, हारवार्ड विश्वविद्यालय, ड्यूक विश्वविद्यालय, लिंडन विश्वविद्यालय, उट्रेष्ट विश्वविद्यालय (हॉलेण्ड), केम्ब्रिज विश्वविद्यालय, फ्राईबर्ग विश्वविद्यालय (प० जर्मनी), पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय, सेंट लोसेफ्ज कॉलेज (फिलाडेलफिया), वेलेण्ड कॉलेज (प्लेनव्यू, टैक्सास), नेशनल लिटोरल विश्वविद्यालय (रोजादियों, आर्जेन्टिना) लेनिनग्राड स्टेट विश्वविद्यालय (यू० एस० एस० आर०), किंग्स कॉलेज विश्वविद्यालय (हेलिफैक्स)तथा विजिनिया विश्वविद्यालय के अन्तर्गत विश्वके बीसों चोटी के वैज्ञानिक, मनोचिकित्सक एवं मनोविज्ञानविद् परामनोविज्ञान के क्षेत्र में शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से कार्य कर रहे हैं।
पूर्वजन्म-स्मृति या ऐसी अन्य परा-सामान्य घटनाओं का सर्वेक्षण, सत्यता की जांच, तथ्यों का विश्लेषण, सम्बन्धित साक्षियों के परीक्षण आदि का निष्पक्ष एवं वस्तु-सापेक्ष (ऑब्जेक्टिव) अध्ययन किया जा रहा है।
१. Dr. T. M. Mctaggart, Some Dogms of Religion, पृ० ११२-१३, "The most effective way of proving that the
doctrine of pre-existence is bound up with the doctrine of immortality would be to prove directly that the
nature of man was such that it involved a life both before and after the present life." २. See Mctaggart, वही पृ० १२४. "We have no memory of the past life and there seems to be no reason to
expect that we shall remember our present life during subsequent lives. Now an existence that is cut off into separate lives, in none of which memory extends to previous life, may be thought to be of no practical value......Rebirth of a person, without a memory of the previous life would be equal to annihilation
of that person." ३. Pringle-Pettison, Idea cf Immortality' पृ० १२७ “Dr. Mctaggart's supposition that self is a metaphysical
substitute in which personal identity dies is not an adequate explanation for the continuity of succesive
lives, as continuity is never realised owing to the absence of memory." ४. Dr. Kalghatgi, Karma and Rebirth', पृ०६० "Apart from the investigations of the modern psychical research
and its implications on the problem of rebirth, we have evidence to show that in some cases there is not
loss of memory of the past life." ५. 'Parapsychology : Sources of Information' (compiled under the auspices of the American Society for Psychi
cal Research) by Rhea A. White and Laura A. Dale, The Scarecrow Press, Inc. Metuchen. N.J., U.S.A., 1973.
जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ
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