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दंतियाँ उनके अहिंसा पथ और गणितादि के विलक्षण ज्ञान को बतलाती हैं। लोक में जीवसंख्या की अचलता के आधार पर जनता को हिंसा तथा माँसाहार की ओर से मोड़कर शाकाहारी तथा हरियाली रहित भोजन की ओर प्रवृत्त करने का प्रयत्न पिथेगोरस की निजी प्रतिभा का द्योतक है ( E. T. Bell, Magic of Numbers, 1946, pp. 87, 88, 91, 92 ) । यदि कोई साधारण स्रोत यूनान और चीन के मध्य रहा, तो ऐसे प्रकरण चीन में कन्फ्यूशस या ताओ काल में दृष्टिगत होना चाहिए। नीधम के अनुसार बौद्ध धर्म का चीन में प्रथम प्रवेश ई. पश्चात् 65 में हुआ जिसके प्रायः 100 वर्ष पश्चात् प्रथम सूत्रों का चीनी भाषा में लोयांग में अनुवाद प्रारम्भ हुआ । ( नीघम, भाग 1, पृ. 112 ) । मिस्र देश की जागृति का काल भी प्रायः यही है, जबकि सायटिक युग ( 663-525 ई.) में वहाँ अहिंसक कूपू कालीन प्राचीन परम्पराओं का अकस्मात अनुसरण प्रारम्भ हुआ था और नरसिंह ( Sphinx ) प्रतीक पुनः पूजा की वस्तु बन गया था । सम्भवतः यही आकर्षण पिथेगोरस के पूर्व देश भ्रमण का कारण बना होगा 123
अविभागी पुद्गल परमाणु के आधार पर परिभाषित बिन्दु के प्रयोग में वीरसेन द्वारा कतिपय नवीन विधियों का उपयोग प्रकट हुआ है । इनमें से निश्शेषण विधि विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा शंकु के समच्छिन्नक का घनफल निकाला गया है । इससे का मान निकालने के ऐसे सूत्र का उपयोग किया गया है। जो चीन में त्सु शुंग - चिह्न ( प्राय: पांचवी सदी Tsu Chhung-Chih ) द्वारा प्रयुक्त हुआ है । जैन ग्रंथों - धवल -- में राशि सिद्धान्त में प्रयुक्त भिन्न कलन
चीन तथा मित्र देशों के कलन से श्रेष्ठ है। चीन में सलग गणन ( ई. पू. 4थी शताब्दी में ), भारत में प्रायः 6वीं सदी अथवा कतिपय ग्रंथों ( षट् खण्डागमादि) में ई. पश्चात् 2रीं सदी में उपलब्ध हैं । जहाँ चीन में वर्ग और घनमूल ई. पू प्रथम सदी में दृष्टिगत हैं वहाँ षट्खण्डागम में सीमित क्षेत्र में स्थिति प्रदेश बिन्दुओं की संख्या का बारहवाँ वर्गमूल निकालने का उल्लेख है और जिसके तुल्य मान क्षेत्र, काल, भाव में प्रदत्त हैं । चीन में ज्यामितीय सामग्री ई. पू. तृतीय सदी में उपलब्ध है, वहीं तिलोयपण्णत्ती में पांचवी सदी तथा इतर ग्रंथों
ई. पू. भी दृष्टिगत है। जहां चीन में प्रायः 1000 वर्ष पूर्व बीजगणित तथा ज्यामिति की मूलभूत तादात्म्य प्रकट है वहां धवल ( 9वीं सदी) तथा अलख्वारिज्नी (9 वीं सदी) में दृष्टव्य है। चीन में कूट स्थिति के प्रयोग भी प्राकृत ग्रंथों में उपलब्ध हैं । इसी प्रकार अनिर्वृत विश्लेषण सुन त्जू ( 4थी सदी) तथा प्राकृत ग्रंथों में दृष्टिगत है ।
24. देखिये 1 ( ख ) ।
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लोकोत्तर गणित विज्ञान में ज्योतिष बिम्बों की संख्या का निर्धारण, उनकी गमनशीलता, सुमेरु से दूरी, चित्रातल से ऊंचाई, बिम्बों के आकार, तथा माप, आदि विविध प्रकार की सामग्री विकसित की गयी । इन प्राचीन तत्वों को हजारों वर्षों से अपरिवर्तित रखा गया (ति.प., पृ. 16-17 ) । यूनान से ये विधियाँ अत्यंत भिन्न हैं | 24
23. Salem Hossan, The Sphinx, Its History in the Light of Recent Excavations, Cairo,
pp. 219-221, (1949).
कर्म सिद्धान्त के गणित का इतिहास विगत 25 वर्ष के विश्व विज्ञान में प्रोद्भूत गणितीय सिस्टम सिद्धान्त से प्रारम्भ हुआ है । नियंत्रण योग्यता तथा परिणाम योग्यता के आकलन गणितीय रूप में विश्व के
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