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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्ध - इतिहास जयन्तविजय जी ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है-- _ 'संवत् १३३८ श्रीचैत्रगच्छे भर्तृपुरीय सा. खुनिया भा. होली सोमकीर्तिसूरि (वि.सं. १५२७-१५४२, प्रतिमालेख) पु. हरया केशववाण रावण बेल पु. नरसिंह खीमड हरिचंदेण निजपूर्वजपित्रोः श्रेयो) श्रीशांतिनाथबिंब का. श्रीवर्धमानसूरभिः।' शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चारुचन्द्रसूरि वीरचन्द्रसूरि अनुपूर्तिलेख, आबू (वि.सं. १५२७-१५४०, प्रतिमालेख) (वि.सं. १५३१-१५३४, प्रतिमा लेख) इस शाखा से संबद्ध तृतीय लेख वि.सं. x x १४ का है। वि.सं. १५५४/ई. सन् १४९८ में लिपिबद्ध की गई यह चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है। त्रिपुटी महाराज ने इनकी वाचना भक्तामरस्तवव्याख्या इस प्रकार की है-- की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित 'संवत् x x १४ वर्षे मार्गसुदि ३ श्रीचैत्रपुरीयगच्छे चैत्रगच्छ की शाखायें-- जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, श्रीवुडागणि भतृपुर महादुर्ग श्री गुहिलपुत्रवि xx हार श्रीडवड़ादेव । साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से चैत्रगच्छ की कई शाखाओं आदिजिन बाभांग दक्षिणाभिमखदारगफायां कलिं तदेवीनां चत. का पता चलता है। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है-- xxxx लानां चतुर्णां विनयकानां पादुकाघटितसहसाकार १. भर्तपरीय शाखा -- जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, सहिताश्रीदेवीचित्तोडरी मूर्ति xxxx श्रीभ्र (भ) र्तृगच्छीय चैत्रगच्छ की इस शाखा का नामकरण भर्तृपुर (वर्तमान भटेवर, महाप्रभावक श्रीआम्रदेवसरिभिः xxx श्री सा. सामासु सा. राजस्थान) नामक स्थान से हुआ प्रतीत होता है। इस शाखा से हरपालेन श्रेयसे पण्योपार्जना x व्यधीयते।। संबद्ध तीन लेख मिले हैं। प्रथम लेख वि.सं. १३०३ और द्वितीय लेख वि.सं. १३३४ का है। तृतीय लेख...१४ का है, अर्थात् यद्यपि इस लेख के प्रथम दो अंक नष्ट हो गए हैं, फिर भी इसके प्रथम दो अंक नष्ट हो गए हैं। श्रीपूरनचन्द नाहर और र लख क लेख की भाषाशैली पर राजस्थानी भाषा के प्रभाव को देखते विजयधर्मसूरि ने वि.सं. १३०३/ई. सन १२४७ के लेख की हुए इसे १६वीं शती के प्रारंभ अर्थात् १५१४ वि.सं. का माना जा वाचना इस प्रकार दी है--९ सकता है। 'संवत् १३०३ वर्षे चैत्र वदि ४ सोमदिने श्रीचैत्रगच्छे भर्तृपुरीय शाखा से संबद्ध उक्त लेखों से यद्यपि कई श्रीभद्रेश्वरसंताने भर्तृपुरीयवत्स श्रे. भीम अर्जुन कडवट श्रे. चूडा मुनिजमुनों के नाम ज्ञात होते हैं, किन्तु उनके आधार पर इस पुत्र श्रे. वयजा धांधल पासड उवादिभि : कुटुंबसमेतैः... प्रतिमा शाखा के मुनिजनों की गुरु-परंपरा की कोई लंबी तालिका नहीं कारिता। प्रति. श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनदेवसूरिभिः।।' - बन पाती है। .. तीर्थङ्कर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २. धारणपद्रीयशाखा- यद्यपि प्रतिमालेखों में 'धारणपद्रीय' प्रतिष्ठास्थान--करेड़ा पार्श्वनाथ जिनालय, करेड़ा नाम मिलता है, जो संभवतः थारणपद्रीय होना चाहिए। इस भर्तृपुरीय शाखा से संबद्ध द्वितीय लेख वि.सं. १३३८/ई. शाखा से संबद्ध २५ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं, जो वि.सं. १४०० से सन् १२८२ का है, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि वि.सं. १५८२ तक के हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-- १. १४०० तिथिनष्ट राजदेवसूरि शांतिनाथ की धर्मनाथ जिनालय, मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, धातु की पंचतीर्थी उपलोगभारो, भाग-१, लेखाङ्क १०१९ प्रतिमा का लेख अहमदाबाद श्रेयांसनाथ की संभवनाथ देरासर, वही, भाग-१, धातु की प्रतिमा झवेरीवाड़, अहमदाबाद लेखाङ्क ८६६ का लेख . २. १४५७ आषाढ सुदि ५ पासदेवसूरि गुरुवार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210491
Book TitleChaitra Gaccha ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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