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ग्रन्थों की सुरक्षा में राजस्थान के जैनों का योगदान
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लिखे हुए प्रतिष्ठा-पाठ की प्रति उपलब्ध हुई है जो १७वीं शताब्दि की लिखी हुई है और अभी तक पूर्णतः सुरक्षित है। कपड़ों पर लिखे हुए इन भण्डारों में चित्र भी उपलब्ध होते हैं जिनमें चार्टस् के द्वारा विषय का प्रतिपादन किया गया है। प्रायः प्रत्येक मन्दिर में ताम्रपत्र एवं सप्तधातु पत्र भी उपलब्ध होते हैं।
इन भण्डारों में ग्रन्थ लेखक के गुणों का भी वर्णन मिलता है जिसके अनुसार इसमें निम्न गुण होने चाहिये
सर्वदेशाक्षराभिज्ञः सर्वभाषा विशारदः । लेखकः कथितो राज्ञः सर्वाधिकरणषु वै ॥ मेधावी वाक्पटु धीरो लघुहस्तो जितेन्द्रियः ।
परशास्त्र परिजाता, एवं लेखक उच्येत ॥ ग्रन्थ लिखने में किस-किस स्याही का प्रयोग किया जाना चाहिये इसकी भी पूरी सावधानी रखी जाती थी। जिसमें अक्षर खराब नहीं हों, स्याही नहीं फूटे तथा कागज एक दूसरे के नहीं चिपके । ताड़पत्रों के लिखने में जो स्याही काम में ली जाने वाली है उसका वर्णन देखिये
सहवर-भूगः त्रिफाना, कासिं लोहमेव तीली।
समकत्जाल बोलपुता, भवति मषी ताडपत्राणां ॥ प्राकृत भाषा में निबद्ध इस ग्रंथ में २५४ पत्र हैं। इसी तरह महाकवि दण्डी के काव्यादर्श की। पाण्डुलिपि सन् ११०४ की उपलब्ध है जो इस ग्रन्थ की अब तक उपलब्ध ग्रन्थों में सबसे प्राचीन है।' जैसलमेर के इस भण्डार में और भी ग्रन्थों की प्राचीनतम पाण्डुलिपियाँ हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं
अभयदेवाचार्य की विपाकसूत्र कृति सन् ११२८ जयकीतिसूरि का छन्दोनुशासन सन् ११३५ अभयदेवाचार्य की भगवती सूत्र कृति सन् ११३८
विभत्नसरि द्वारा विरचित पउम चखि की सन् ११४१ में लिखित प्राचीन पाण्डुलिपि भी इसी भण्डार में संग्रहीत है। यह पाण्डुलिपि महाराजाधिराज श्री जयसिंह देव के शासन काल में लिखी गयी थी। वर्द्धमानसूरि की व्याख्या सहित उपदेशपढ़प्रकरण की पाण्डुलिपि जिसका लेखन अजमेर सम्बत १२१२ में हुआ था- इसी भण्डार में संग्रहीत है।
संवत् १२१२ चैत्र सुदि १३ गुरौ अधेट श्री अजयमेरू दुर्गे समस्त राजकवि विराजित परम भट्टारक महाराजाधिराज श्री विग्रह देव विजय राज्ये उपदेश टीका लेखिति ।
चन्द्रप्रभस्वामी चरित (यशोदेवसूरि) की भी प्राचीनतम पाण्डुलिपि इसी भण्डार में सुरक्षित है जिसका लेखन काल सन् १९६० है तथा जो ब्राह्मण गच्छ के पं० अभयकुमार द्वारा लिपिबद्ध की गयी थी।
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जय
१. सम्वत् ११६१ भाद्रपदे । २. सम्बत् ११६८ कार्तिक वदि १३ ।। छ । महाराजाधिराज श्री जयसिंघ विजय देव राज्ये भग कच्छ
समवस्थितेन लिखितेयं मिल्लणेन । ३. सम्वत् १२१७ चैत्र वदि ६ बुधौ ॥ छ । ब्राह्मणगच्छे पं० अभयकुमारस्व
في مراجعه به معرفي دفتر د ده مي عمر منحرف عندما منعته .
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تعيش فيه يعة
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