________________
१४६
डॉ० मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी
पंक्ति में प्रक्षेपों पर विभिन्न देवताओं की स्वतंत्र तथा शक्तिसहित एवम् अप्सराओं तथा जिनों की लांछनरहित मूर्तियाँ हैं। इनमें अष्टदिक्पालों, यक्षी अम्बिका, शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा आदि की मूर्तियाँ हैं। बीच-बीच में आलों में व्यालों की विविध रूपों वाली मूर्तियाँ हैं। मध्य की पंक्ति में विभिन्न देव युगलों, लक्ष्मी तथा लांछनरहित जिनों आदि की मूर्तियां हैं। मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से केवल निचली दो पंक्तियों की मूर्तियाँ ही महत्वपूर्ण हैं ।' ऊपर की पंक्ति में प्रक्षेपों तथा आलों में पुष्पहार से युक्त विद्याधर युगल, गन्धर्व एवं किन्नर-किन्नरियों की उड्डीयमान आकृतियाँ हैं। नीचे की दोनों पंक्तियों की देव-युगल एवं स्वतंत्र देवों की मूर्तियों में देवता सदैव चतुर्भुज हैं किन्तु उनकी शक्तियां द्विभुजा हैं। इन मूर्तियों में देवताओं की शक्तियों की एक भुजा सदा आलिंगन-मुद्रा में है और दूसरे में दर्पण या पद्म प्रदर्शित है । तात्पर्य यह है कि विभिन्न देवताओं के साथ उनकी पारम्परिक शक्तियों, यथा-विष्णु के साथ लक्ष्मी, ब्रह्मा के साथ ब्रह्माणी एवं शिव के साथ शिवा के स्थान पर व्यक्तिगत विशेषताओं से रहित सामान्य लक्षणों वाली शक्तियाँ निरूपित हैं। मण्डप और गर्भगृह के जंघा के अतिरिक्त ब्राह्मण देवताओं की स्वतंत्र एवं युगल मूर्तियां मन्दिर के शिखर एवं वरण्ड भाग पर भी चारों ओर बनी हैं। स्वतंत्र देवमतियों में केवल शिव, विष्ण एवं ब्रह्मा की तथा देव
में शिव विष्ण एवं ब्रह्मा के साथ ही कबेर. राम, बलराम. अग्नि एवं काम की भी मतियां हैं। जंघा की मतियों में देवता सदैव त्रिभंग में हैं, पर अन्य भागों की मूर्तियों में इन्हें ललितमुद्रा में भी दिखाया गया है। मन्दिर के जंघा एवं अन्य भागों पर जैन यक्षी, अम्बिका एवं चक्रेश्वरी तथा सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी आदि की भी मतियां हैं। जिनों तथा चक्रेश्वरी एवं अम्बिका यक्षियों की मतियों के अतिरिक्त मण्डप के जंघा की अन्य सभी मूर्तियां ब्राह्मण देवकुल से सम्बन्धित और प्रभावित हैं। इन मतियों में विष्णु के किसी अवतार रूप तथा इसी प्रकार शिव के किसी संहारक या अनुग्रहकारी स्वरूप की मूर्तियां नहीं हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि कलाकार ने ब्राह्मण प्रभाव पर किंचित नियंत्रण रखने की भी चेष्टा की थी। त्रिशल एवं सर्प तथा नन्दी वाहन वाले शिव एवं श्रक और पुस्तक से युक्त ब्रह्मा को कुछ विद्वानों ने क्रमशः जैन परम्परा के ईश्वर और ब्रह्मशान्ति यक्षों से पहचानने का प्रयास किया है, जो इस मन्दिर के शिल्पांकन में ब्राह्मण देवमूर्तियों के स्पष्ट प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं है। खजुराहो में श्रेयांशनाथ की एक भी मूर्ति नहीं है, अतः श्रेयांशनाथ के यक्ष ईश्वर के स्वतंत्र निरूपण का प्रश्न ही नहीं उठता।
इसी प्रकार पार्श्वनाथ मन्दिर पर विष्णु एवं बलराम की कई स्वतन्त्र तथा शक्तिसहित युगल मूर्तियाँ हैं। किन्तु खजुराहो की नेमिनाथ की मूर्तियों में बलराम और कृष्ण का निरूपण नहीं हुआ है, जबकि देवगढ़ तथा मथुरा के दिगम्बर स्थलों पर नेमिनाथ की मूर्तियों में इनका अंकन हुआ है। तात्पर्य यह कि पार्श्वनाथ मन्दिर की विष्णु तथा बलराम की मूर्तियाँ ब्राह्मण मन्दिरों के अनुकरण पर बनीं। यदि ये जैन परम्परा के अन्तर्गत बनी होती तो नेमिनाथ की मूर्तियों में भी उनका निश्चित ही अंकन हुआ होता। इसी सन्दर्भ में एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि देवताओं का अपनी शक्तियों के साथ आलिंगनमुद्रा में निरूपण भी पूरी तरह जैन परम्परा के विरुद्ध है। जैन परम्परा में कहीं भी कोई देवता अपनी शक्ति के साथ अभिलक्षित नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में
१. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, ब्रुन, क्लाज, "दि फिगर आव ट लोअर रिलीफ्स आन दि पार्श्वनाथ टेम्मुल ऐट
खजुराहो", आचार्य श्री विजय वल्लभसूरि स्मारक प्रन्थ, बम्बई, १९५६, पृ. ७-३५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org