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________________ | श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ॥ चिन्तन के विविध बिन्दु : ५५८ : आदि संघों के नागजी, दुलीचन्दजी, मोतीचन्द्र तथा सम्भूजी ये चारों संघवी जब अहमदाबाद में आये थे तो उनका लोकाशाह के घर जाना इस बात को सिद्ध करता है कि लोंकाशाह का जन्म स्थान अहमदाबाद ही होना चाहिए। विनयचन्द्रजी कृत पट्टावली में भी अहमदाबाद रहना लिखा है।" श्री अ० मा० श्वे० स्था० जैन कान्फ्रेन्स स्वर्ण जयन्ती ग्रन्थ में लिखा है, "धर्मप्राण लोंकाशाह के जन्मस्थान, समय और माता-पिता के नाम आदि के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न अभिप्राय मिलते हैं किन्तु विद्वान् संशोधनों के आधारभूत निर्णय के अनुसार श्री लोकाशाह का जन्म अरहट्ट बाड़े में चौधरी गोत्र के ओसवाल गृहस्थ सेठ हेमाभाई की पवित्र पति-परायणा भार्या गंगाबाई की कूख से वि० सं० १४७२ कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को शुक्रवार ता० १८-७-१४१५ के दिन हुआ था। श्री लोकाशाह की जाति प्राग्वट भी मिलती है। श्रावक-धर्म-परायण हेमाशाह के संरक्षण में बालक लोकाशाह का बाल्यकाल सुख-सुविधापूर्वक व्यतीत हुआ। छः-सात वर्ष की आयु में उनका अध्ययन आरम्भ कराया गया। थोड़े ही वर्षों में उन्होंने प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। मधुरभाषी होने के साथ-साथ लोकाशाह अपने समय के सुन्दर लेखक भी थे। उनका लिखा हुआ एक-एक अक्षर मोती के समान सुन्दर लगता था। शास्त्रीय ज्ञान की उनके मन में विशेष रुचि थी। लोकाशाह अपने सद्गुणों के कारण अपने पिता से भी अधिक प्रसिद्ध हो गये। जब वे पूर्ण युवा हो गये तब सिरोही के प्रसिद्ध सेठ शाह ओघवजी को सुपुत्री 'सुदर्शना' के साथ उनका विवाह कर दिया गया। विवाह के तीन वर्ष बाद उनके यहाँ पूर्णचन्द्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। लोकाशाह का विवाह सं० १४८७ में हआ। लोकाशाह के तेईसवें वर्ष में माता का और चौबीसवें वर्ष में पिता का देहावसान हो गया। सिरोही और चन्द्रावती इन दोनों राज्यों के बीच युद्धजन्य स्थिति के कारण अराजकता और व्यापारिक अव्यवस्था प्रसारित हो जाने से वे अहमदाबाद आ गये और वहाँ जवाहिरात का व्यापार करने लगे। अल्प समय में ही आपने जवाहिरात के व्यापार में अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली । अहमदाबाद का तत्कालीन बादशाह मुहम्मदशाह उनके बुद्धि-चातुर्य से अत्यन्त प्रभावित हुआ और लोंकाशाह को अपना खजांची बना लिया ।" विदुषी महासती चन्दनकुमारीजी महाराज ने लिखा है, "कहते हैं एक बार मुहम्मदशाह के दरबार में सूरत से एक जोहरी दो मोती लेकर आया। बादशाह मोतियों को देखकर बहत प्रसन्न हुआ। खरीदने की दृष्टि से उसने मोतियों का मूल्य जंचवाने के लिए अहमदाबाद शहर के सभी प्रमुख जोहारियों को बुलाया । सभी जौहरियों ने दोनों मोतियों को 'सच्चा' बताया । जब लोंका ४ हमारा इतिहास, पृष्ठ ६०-६१ ५ पट्टावली प्रबन्ध संग्रह, पृ० १३५ ६ वही, पृष्ठ ३८ ७ श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, पृष्ठ ४७० ८ हमारा इतिहास, पृष्ठ ६१-६२ ६ स्वर्ण जयंती ग्रन्थ, पृष्ठ ३८ १० वही, पृष्ठ ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210330
Book TitleAetihasik Charcha Dharmveer Lokashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherZ_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf
Publication Year1979
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size2 MB
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