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अर्चनार्चम
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चतुर्थ खण्ड / ७४
सिख धर्म में उपासना
सिखों के मन्दिर या गुरुद्वारे में कोई मूर्ति नहीं होती वरन् इनका धर्मग्रन्थ 'गुरुग्रंथ साहिब' होता है । इसके प्रति सिखों की अपार भक्ति तथा श्रद्धा होती है और वे इसी की पूजा व पाठ करते हैं जब 'ग्रन्थसाहिब' का पाठ होता है तब कोई भी एक श्रद्धालु पीछे खड़ा रहकर इस पर पंखा भलता है । इसी ग्रन्थ के समक्ष रुपया, पैसा चढ़ाया जाता है तथा प्रतिदिन दोनों वक्त इसका बड़ी भक्ति से पाठ किया जाता है। केश, कंपा, कच्छा, कड़ा और कृपाण इनके प्रति पवित्र धर्म-चिह्न माने जाते हैं। ये मन की पवित्रता पर जोर देते हैं तथा माला पर 'सतनाम वाह गुरु' का जप करते हैं। यह हिन्दू धर्म का ही एक पंथ है ।
वैदिकधर्म की उपासना
वस्तुतः हिन्दूधर्म अनेकरूप धर्म है। वेद, उपनिषद्, महाभारत, भागवत गीता, रामायण एवं पुराण आदि इसके अनेक धर्मग्रन्थ हैं । हिन्दूधर्म में ईश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा राम, कृष्ण, हनुमान की ही नहीं वरन तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की उपासना की जाती है । उपासना साकार व निराकार दोनों प्रकार की होती है । पाठ, पूजा, जप, यात्रा, तपस्या तथा ध्यान प्रादि सभी उपासना के विविध अंग होते हैं।
उपरिवर्तित कुछ धर्मों के अलावा अन्य अनेक धर्म हैं, जिनकी उपासना पद्धतियां विभिन्न प्रकार की हैं। कुछ नाम इस प्रकार है:- शैव, सौर, गाणपत्य, श्रीनिम्बार्क, श्रीवल्लभ, श्रीगौड़ीय, श्रीरामानन्द, उदासीन, रामसनेही, दादूपंथ, नाथ आदि २ । लेख का कलेवर बढ़ने के कारण इन सभी के विषय में विस्तृत नहीं लिखा जा सकता, आवश्यकता भी नहीं है । यही जानना काफ़ी है कि इन सभी सम्प्रदायों की उपासना पद्धतियाँ विभिन्न हैं किन्तु अपने इष्ट या उपास्य के प्रति इनकी भक्ति का पार नहीं है। अनेक संत बाज भी निर्जन स्थानों पर जाकर अथवा गिरि-कन्दरायों में बैठकर एकाग्र उपासना-रत पाए जाते हैं। कभी-कभी वे बस्ती में आकर मात्र शरीर को टिकाने जितना खाद्यान्न ग्रहण करते हैं ।
प्रस्तुत शास्त्रोक्त उदाहरणों से तथा अनेक भक्तों के अनुभवों से ज्ञात होता है कि साकार एवं निराकार, दोनों ही प्रकार की उपासनाओंों के द्वारा उपासक अपने लक्ष्य को प्राप्त करते रहे हैं । फ़िर भी प्राज अनेक साधकों की शिकायत रहती है कि प्रयत्न करने पर भी उपासना में मन एकाग्र नहीं हो पाता, अथवा चिरकाल करते चले आने पर भी उन्हें अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई । ऐसे साधना या उपासना के इच्छुकों को उपासना में सहायक तत्त्वों का ज्ञान करके उन्हें अपनाना चाहिये तथा उपासना को सफल बनाने वाले कारणों और साधनों को अपनाकर उपासना को बलवती तथा फलप्रदायिनी बना लेना चाहिये । उपासना में सहायक तत्व
उपासना प्रारम्भ करने से पूर्व जिन सहायक तत्त्वों पर अमल करना आवश्यक है वे कोई नये या अनोखे नहीं हैं । हमारे जीवन व्यवहार में व्यवहृत होने वाले जाने-पहचाने नियम ही हैं । किन्तु उनका अभ्यास एवं पालन सचाई तथा कड़ाई से होना चाहिये। क्योंकि एक छोटो सो भूल भी बनते हुए कार्य को पल भर में विगाड़ सकती है। वे सहायक तत्त्व चार हैं जिन का क्रमशः संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है
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