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सोलह जातियोंके इन क्षेत्रोंके क्षेत्रफल निकालनेकी दो प्रकारकी विधियोंका उल्लेख महावीरने किया है :(क) व्यावहारिक (approximate) और सूक्ष्म (accurate):
क्षेत्रं जिनप्रणीतं फलाश्रयाद व्यावहारिक सूक्ष्ममिति ।
भेदाद् द्विधा विचिन्त्य व्यवहारं स्पष्टमेतदभिधास्ये ॥७-२॥ यह कहना कठिन है कि यूक्लिडके प्रमेयोंका परिचय महावीर या अन्य क्षेत्रज्ञ गणितज्ञोंको था या नहीं। संभवतया रेखागणितीय तर्कका उस प्रकारका विकास इस देशमें नहीं हुआ, जैसा कि यूनानमें । त्रिभजके कोणोंको नापनेका कोई पैमाना (डिगरी या समकोणोंका) उस समय नहीं था किन्तु ज्या (Sine) के रूपका अनुपात उन्हें परिचित था। ज्याओंकी अपेक्षासे ही कोण व्यक्त किये जाते थे। त्रिभुजों और चतुरस्रोंके क्षेत्रफल निकालनेके सूत्रोंका विकास महावीरने किया। प्रत्येक त्रिभुजके तीनों शीर्ष एक विशेष वृत्त (परिमण्डल, शुल्बसूत्रोंकी परिभाषामें) पर स्थित होते हैं। किन्तु सभी चतुरस्रों (quadrialtarals) के लिये ऐसा होना आवश्यक नहीं है। ब्रह्मगुप्तने ब्र० स्फु० सिः, १२।२१ [1] और महावीरने [ग.सा. सं० ९१५० [1] ने इस बातका ध्यान नहीं रक्खा। दोनोंने सभी चतुरस्रोंके क्षेत्रफलके लिये निम्न सूत्र दिया :
चतुरस्रका क्षेत्रफल = Vs (s - a) (s - b) (s-c) (s - d) इस सूत्रमें s = चारों भुजाओंके योगका आधा; a, b, c,d= चार भुजाओंकी पृथक् पृथक् लम्बाई । त्रिभुजको ऐसा चतुरस्र मान सकते हैं, जिसकी एक भुजाकी लम्बाई शून्य हो, अर्थात् d = 0 समीकरणसे, त्रिभुजका क्षेत्रफल =Vs (s-a) (-b) (-) जहाँ a, b, c तीनों भुजाओंकी पृथक पृथक लम्बाई है, और 3 = 1 (a + b + c) वस्तुतः महावीर और ब्रह्मगुप्तके ये समीकरण उन्हीं चतुरस्रोंके लिये यथार्थ है जिनके चारों शीर्ष वृत्तकी परिधि पर हों (eyclic quadrilateral)। सभी चतुरस्रोंके लिये सामान्य समीकरण निम्न होगा :
क
क
ग
चित्र १. चक्रीय चतुरस्र c a +b+c+d
चित्र २. अचक्रीय अतुरस्र
<क+<ग
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