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आचारांग की समीक्षा एवं उन्हें सुधारने की अनिवार्यता
भू० कृ० के प्रत्यय 'ऊण' और 'उं' वसुदेवहिंडी में क्रमशः छिहत्तर और तीन प्रतिशत (७६%, ३/.) तथा पउमचरियं में क्रमशः बहत्तर और बीस प्रतिशत (७२ / २०/-) मिलते हैं जबकि ये अर्वाचीन प्रत्यय आचारांग (प्र० श्रु० स्कंध ) में नहीं मिलते । वसुदेवहिण्डी और पउमचरियं की प्राकृत भाषा का स्वरूप अर्वाचीन है अतः उनमें मध्यवर्ती व्यंजनों का लोप छप्पन से बासठ प्रतिशत (५६/- से ६२ / . ) तक मिलता है जब कि आचारांग की भाषा का स्वरूप प्राचीन है और शुब्रिंग महोदय के संस्करण में जो लोप अट्ठावन प्रतिशत (५८/-) मिलता है वह विश्वसन कैसे माना जाय ? पू० जम्बूविजयजी के संस्करण में यह लोप चौबीस प्रतिशत ही (२४/-) है । उसे हम विश्वसनीयता के निकट मान सकते हैं ।
जैन आगम साहित्य के अन्य सूत्र ग्रंथों की भाषा के विश्लेषण से भी ऐसा प्रतीत होता है कि आचारांग के शुब्रिंग के संस्करण में मध्यवर्ती व्यंजनों का अट्ठावन प्रतिशत लोप (५८%) उपयुक्त नहीं है । यह मध्यवर्ती व्यंजन- लोप पज्जोसवणा ( कल्पसूत्र, सूत्र, २३२ से २९१ ) में चौवा - लीस प्रतिशत (४४%) व्यवहार सूत्र (१, २, ७,४,१० ) में पैंतालीस प्रतिशत (४५%), बृहत्कल्पसूत्र (उद्दे० १ से ६) में चौवन प्रतिशत ( ५४%) और निशीथसूत्र (उद्दे० १ से ५) में छप्पन प्रतिशत (५६% ) है । इन सब सूत्रों की प्राकृत भाषा भी प्राचीन है जैसा कि निम्न संबंधक . भूत ( पूर्वकालिक ) एवं हेत्वर्थ कृदन्तों से मालूम होता है
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संबंधक भूत कृदन्त-प्रतिशत
इत्ताणं,
इय
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ग्रन्थ
१.
प्रत्यय
व्यवहारसूत्र
निशीथसूत्र
बृ. क. सूत्र
पज्जोसवणा
इत्ता,
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४५
१२
६
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१५
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इन सभी सूत्र ग्रंथों में सं०भू० कृ० के प्रत्यय-ऊण का प्रयोग नहीं मिलता है और सं० भू० कृ० एवं हेत्वर्थक प्रत्ययों का (ऊण एवं उं) का एक दूसरे के लिए प्रयोग भी नहीं मिलता है । ऐसे प्रयोग प्रायः पश्चात्कालीन हैं ।
दो और प्राचीन आगम-सूत्र-ग्रंथों की भाषा का विश्लेषण भी यही साबित करता है । षट्खंडागम (सूत्र नं १ से १७७) में इकतालीस प्रतिशत (४१%) लोप मिलता है और पण्णवणा सूत्र (१.१ से ७४, २३९ से १४७ ) में बावन प्रतिशत ( ५२%) प्राप्त होता है । षट्खंडागम में स० ए० व० की विभक्ति 'अंसि' के बदले में 'म्मि' और 'म्हि' ११% और २०% के अनुपात मिलती है । पण्णवणा में तो 'ए' विभक्ति मिली है, 'अंसि', 'म्हि' या 'म्मि' देखने को नहीं मिली।
इन दोनों ग्रन्थों का भाषाकीय अध्ययन उपरोक्त अंशों तक ही सीमित है ।
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च्चा, त्तु (ट्ट)
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| हेत्वर्थं-प्रतिशत
४
त्तए
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उं
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३
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