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आगमि गच्छ / प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास
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भाषा में हैं। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है
कल्याणराज सूरि
क्षमाकलश [ सुन्दर राजारास एवं ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता ]
४- लघुक्षेत्र समासचौपाई ' - यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि०सं० १५९४ में पाटन नगरी में रची गयी है । इसकी भाषा मरु-गुर्जर है । रचना के प्रारम्भ और अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है
सोम रत्नसूर
गुणनिधानसूरि
उदय रत्नसूर
मतिसागरसूरि [ रचनाकार ]
अभिलेखीय साक्ष्य
आगमि गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर वि०सं० १४२१ से वि०सं० १६८३ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इन प्रतिमालेखों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, जो इस प्रकार हैं
१ - अमरसिंहसूरि इनके द्वारा वि०स ं० १४५१ से वि० सं० १४७८ - के मध्य प्रतिष्ठापित ७ प्रतिमा लेख उपलब्ध हैं, इनका विवरण इस प्रकार है
वि०सं० १४५१
वि०सं० १४६२
वि०सं० १४६५
वि०सं० १४७०
वि०सं० १४७५
वि०सं० १४७६ वि०सं० १४७८
अमररत्नसूरि 1
सोम रत्नसूर
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ज्येष्ठ सुदि ४ रविवार वैशाख सुदि ३
माघ सुदि ३ रविवार तिथि विहीन
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१. देसाई, पूर्वोक्त पृ० ३३७ और आगे
चैत्र वदि १ शनिवार वैशाख सुदि ३ गुरुवार
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१ प्रतिमा
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