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________________ अलकावलिमें, जैसा कि नामसे ही स्पष्ट है, बाल इस प्रकारसे सजाये जाते थे कि उनकी घुघराली लटें माथे पर आती थीं। इस प्रकारका केशविन्यास अहिच्छत्राकी मृण्मूर्तियोंमें सुन्दर रूपमें अंकित है।' इस सन्दर्भमें अहिच्छत्राके शिव मन्दिर (ई० ४५० और ६५० के बीच)में प्राप्त पार्वतीके अत्यन्त कलापूर्ण सिरका उल्लेख करना चाहिए, जिसमें धम्मिल्ल व अलकावली दोनोंका अंकन एक साथ मिलता है। केशोंको सजानेका दूसरा प्रकार भी था-कबरी या चोटी बाँधना। यह भी फूलोंसे सजायी जाती थी (श्लो० १२४) । विरहमें लम्बी बिखरी लटें रखनेका रिवाज था (श्लो०८८)। १६. प्राचीन भारतमें स्त्रियोंको प्रसाधनमें आजसे अधिक रुचि थी। यदि यह कहा जाय कि यह उनके जीवनका एक अनिवार्य अंग था तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। अमरुशतकमें स्त्रियोंके प्रसाधनोंकी चर्चा स्वभावत: अनेक स्थलों पर आती है। शरीरपर विविध प्रकारके सुगन्धित पदार्थों का लेप किया जाता था। इनमें चन्दन (श्लो० ७३, १२४, १०५, १३५) कुङ्कुम (श्लो० ११३, ११९) और अगुरु (श्लो० १०७) का उल्लेख अमरुकने किया है। इन लेपोंके लिए पङ्क (श्लो. १०७) और अङ्गण (श्लो० १७) तथा विलेपन (श्लो० २६) शब्दोंका प्रयोग किया गया है। स्तनों पर अङ्गराग लगानेकी चर्चा प्रायः मिलती है। पान या ताम्बूल खानेकी प्रथा भारत में अत्यन्त प्राचीन कालसे प्रचलित थी और स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणोंके अतिरिक्त इसका एक प्रमुख उद्देश्य था-अधरोंमें आकर्षक लाली पैदा करना (श्लो० १८, ६०, १०७, १२४)। आँखोंमें काजल ( कज्जल, श्लो० ६०) अथवा आञ्जन (अजन, श्लो० १०५, १२४) लगानेकी प्रथा थी। अधरोंमें लाली लगायी जाती थी (श्लो०१०५)। गालों पर विविध प्रकारकी फुल पत्तोंकी आकृतियाँ सुगन्धित पदार्थोंसे अंकित की जाती थीं। उनके लिए विशेषक (श्लो० ३) और पत्राली (श्लो० ८१) शब्दोंका उपयोग किया गया है । पैरोंमें आलता (अलक्तक, श्लो०१०७, ११६, १२८, लाक्षा, श्लो०६०) लगाया जाता था । धारायन्त्र अथवा फौवारेसे स्नान करनेका उल्लेख श्लो० १२५में आया है । १७. मनोरञ्जनके साधनोंका उल्लेख अमरुशतकमें नहीं के बराबर है। केवल घरमें तोता पालनेके रिवाज की चर्चा आयी है। गृहशुककी वाणीके अनुकरणमें प्रवीणताका उल्लेख कई श्लोकोंमें किया गया है (श्लो० ७,१६, ११७) । उसे अनार खानेका शौक था। स्त्रियां कमलसे प्रायः खेलती थीं (लीलातामरस, श्लो०६०)। स्त्रियों द्वारा अपने प्रियतर्मोको लीला कमलसे मारनेका उल्लेख है (श्लो० ७२) । १८. घरोंको बन्दनवार (बन्दनमालिका)से सजानेकी प्रथा थी। विशेषतः किसी प्रिय व्यक्तिके आगमन पर मङ्गलके रूप में बन्दनवार सजायी जाती थी। इसके लिए कमल भी काम में लाया जाता था (श्लो०४५)। १९. घरेलू उपयोगकी वस्तुओंमें पलंग (तल्प, श्लो० १०१), आसन (श्लो० १८-१९) बिछानेकी चादर (प्रच्छदपट, श्लो० १०७), प्रदीप (श्लो० ७७, ९१), कलश (श्लो० ११९), कुम्भ (श्लो०४५) १. पूर्वोक्त, मृण्मूर्ति क्रमांक १७०, २६७, २७४, २७५ । २. पूर्वोक्त, फलक, ४५ । २०४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210106
Book TitleAmru Shatak ki Sanskrutik Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Mitra Shastri
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size742 KB
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