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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ- आधुनिक सन्दर्भ में जैन धर्म.
प्रश्नों एवं उत्तरों की यह श्रृंखला आगे से आगे बढ़ती रह सकती है किन्तु सामान्य चिन्तन या प्रचलित तर्क में कहीं भी यह गुंजाइश नहीं है, जो यह बता सके कि मेरे नाम पर लाटरी खुलना महज संयोग न होकर सृष्टि के अकाट्य नियमों पर आधारित है। 'महज संयोग' जैसे शब्द किसी अपेक्षा हमारी अज्ञानता ही बताते हैं ।
यह महज संयोग वाली बात आइन्स्टीन जैसे वैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते हैं। आइन्स्टीन जैसे वैज्ञानिक यह कहेंगे कि आज के अच्छे से अच्छे कम्प्यूटर भी इसका हिसाब तो नहीं लगा सकते हैं कि लाटरी से कौनसा नंबर निकलेगा किन्तु वैज्ञानिक चिन्तन इससे सहमत है कि सृष्टि के समस्त कण निश्चित नियमों के अनुसार ही हलन चलन करते हैं अतः जो भी नंबर निकला है, वह नियमों के अनुसार ही निकला है, यानी उस परिस्थिति में वह नंबर निकलना न तो वैज्ञानिक आश्चर्य है और न ही चांस या महज संयोग । इसी प्रकार जिस परिस्थिति मुझे जो भी लाटरी का टिकट मिला है, वह भी न तो वैज्ञानिक आश्चर्य है और न ही चांस ।
इस प्रकार धुरंधर वैज्ञानिक गहराई में चांस शब्द की ऐसी व्याख्या करते हैं कि चांस भी प्रकृति के नियमों के अधीन एक व्यवस्था सिद्ध होता है। इतना होते हुए भी यह प्रश्न फिर भी विचारणीय रह जाता है कि एक रुपया खर्च करके लाटरी के टिकट तो लाखों व्यक्तियों ने खरीदे किन्तु मैंने ऐसा क्या विशेष कार्य किया था कि बदले में मुझे दस लाख रुपयों की प्राप्ति हुई? जैसे कोई व्यक्ति हमारे कार्यालय में आए व हम यह पूछें कि 'आप कैसे पधारे?' इसका उत्तर यदि आगन्तुक यह दे कि वह स्कूटर से आया है या अमुक सिटी बस से बस स्टॉप पर आया व फिर पैदल चलकर आया है, तो यह उत्तर कितना अप्रासंगिक होगा। हम उसके आगमन का मूल प्रयोजन जानना चाहते हैं और वे आगमन की विधि बता रहे हैं।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भौतिक विज्ञान लाटरी खुलने की विधि बता सकता है किन्तु यह नहीं बता सकता है कि मेरे किस कार्य के प्रतिफल में मुझे इतना लाभ मिला है। इस प्रकार के प्रश्न के उत्तर के अभाव में एक व्यक्ति लाटरी खुलने पर तो भाग्य कहकर बात समाप्त कर देता है किन्तु एक्सीडेंट आदि से हानि होने पर सारी दुनिया को दोषी बताते हुए दुःखमग्न हो जाता है।
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यहाँ अध्यात्म इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर देता है । अध्यात्म जीवन को अनंत मानता है । अध्यात्म के अनुसार मेरी आत्मा के अनंत जीवन के किसी बिन्दु पर या किन्हीं बिन्दुओं पर मेरे द्वारा ही ऐसा कुछ हुआ था, जिससे अभी दस लाख की लाटरी की प्राप्ति की प्रसन्नता मिली है या दस लाख रुपये खर्च करने की सामर्थ्य प्राप्त हुई है। क्या किया व कब किया? इनके गणितीय सूत्र मनुष्य के ज्ञान की सीमा से परे प्रतीत होते हैं। किन्तु यह जानना एवं मानना कि 'मेरे कार्यों का फल मुझे मिलता है' अपने आपमें मानवीय ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र बनता है। इस सूत्र से 'कारण कार्य सिद्धान्त' की रक्षा होती है। यह सूत्र कई विद्वानों ने कई रूपों में दिया है। पाश्चात्य विद्वान वेन डायर' लिखते हैं
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There truly are no accidents. This Universe is working perfectly including all the subatomic particles that make up you and those you blame. It is all just as it is supposed to be. Nothing more nothing less. इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि -
“सचमुच में देखा जाए तो सृष्टि में एक्सीडेंट नहीं होते हैं। सृष्टि के प्रत्येक अवयव सहित यह सम्पूर्ण सृष्टि पूर्णतया उचित विधि से कार्य कर रही है। सब कुछ जैसा होना चाहिए वैसा ही है। न तो ज्यादा और न कम । "
इसी क्रम में लुई की निम्नांकित पंक्तियाँ भी ध्यान देने योग्य हैं
I believe that everyone, myself included, is 100% responsible fore every, thing in our lives the best and the worst.
इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि -
"मेरी आस्था यह है कि हमारे जीवन में होने वाली समस्त अच्छी एवं बुरी घटनाओं के लिए हममें से प्रत्येक व्यक्ति १०० प्रतिशत जिम्मेदार है। "
इन पंक्तियों के आशय का खुलासा करते हुए लुई हे आगे लिखती हैं कि गहराई से देखा जाए, तो अन्य व्यक्ति या स्थान या वस्तु दोष के पात्र नहीं हैं।
इसी तथ्य को अधिक वजन के साथ व्यक्त करने हेतु वेन डायर एक उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि जैसे हमारे
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