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________________ विवेक-चूडामणि विशुद्धमन्तःकरणं निवेश्य आत्म-दृष्टि शनैः स्वरूपे साक्षिण्यवबोधमात्रे | शनैर्निश्चलतामुपानयन् पूर्ण स्वमेवानुविलोकयेत्ततः ॥ ३८४ ॥ सबके साक्षी और ज्ञानस्वरूप आत्मामें अपने शुद्ध चित्तको लगाकर धीरे-धीरे निश्चलता प्राप्त करता हुआ अन्तमें सर्वत्र अपनेहीको परिपूर्ण देखे । देहेन्द्रियप्राणमनोऽहमादिभिः wwwस्वाज्ञानक्लमैरखिलैरुपाधिभिः Om | विमुक्तमात्मानमखण्डरूपं १२६ पूर्ण महाकाशमिवावलोकयेत् ॥ ३८५ ॥ अपने अज्ञानसे कल्पित देह, इन्द्रिय, प्राण, मन और अहंकार आदि समस्त उपाधियोंसे रहित अखण्ड आत्माको महाकाशकी भाँति सर्वत्र परिपूर्ण देखे । घटकलशकुशूलसूचिमुख्यै गगनमुपाधिशतैर्विमुक्तमेकम् भवति न विविधं तथैव शुद्धं परमहमादिविमुक्तमेकमेव ॥३८६ ॥ जिस प्रकार आकाश घट, कलश, कुशूल ( अनाजका कोठा ), सूची (सुई) आदि सैकड़ों उपाधियोंसे रहित एक ही रहता है; नाना: http://www.ApniHindi.com 1
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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