SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवेक-चूडामणि तन्निवृत्या मुनेः सम्यक्सर्वोपरमणं सुखम् । संदृश्यते सदानन्दरसानुभवविप्लवः || ३७२ || जब उस मुनिका चित्त इन सब उपाधियों से निवृत्त हो जाता है तो उसको पूर्ण उपरतिका आनन्द स्पष्टतया प्रतीत होने लगता है जिससे उसके चित्तमें सच्चिदानन्दरसानुभवकी बाद आने लगती है। वैराग्य-निरूपण अन्तस्त्यागो बहिस्त्यागो विरक्तस्यैव युज्यते । त्यजत्यन्तर्बहिः सङ्ग विरक्तस्तु विरक्तस्तु मुमुक्षया ।। ३७३ || विरक्त ही आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकारका त्याग करना ठीक है । वही मोक्षकी इच्छासे आन्तरिक और बाह्य संगको त्याग देता है । १२२ बहिस्तु विषयैः सङ्गं तथान्तरहमादिभिः । विरक्त एव शक्नोति त्यक्तुं ब्रह्मणि निष्ठितः ॥ ३७४ ॥ इन्द्रियोंका विषयोंके साथ बाह्य संग और अहंकारादिके साथ आन्तरिक संग — इन दोनोंका ब्रह्मनिष्ठ विरक्त पुरुष ही त्याग कर सकता है । वैराग्यबोधौ पुरुषस्य पक्षिवत् पक्षौ विजानीहि विचक्षण त्वम् । विमुक्तिसौधाग्रतलाधिरोहणं ताभ्यां विना नान्यतरेण सिध्यति ॥ ३७५॥ http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy