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________________ विवेक चूडामणि समाधि-निरूपण अज्ञानहृदयग्रन्थेनिःशेषविलयस्तदा समाधिनाविकल्पेन यदाद्वैतात्मदर्शनम् ॥३५४॥ अज्ञानरूप हृदयकी प्रन्थिका सर्वथा नाश तो तभी होता है जब निर्विकल्प समाधिद्वारा अद्वैत आत्मस्वरूपका साक्षात्कार कर लिया जाता है। त्वमहमिदमितीयं कल्पना बुद्धिदोषात् प्रभवति परमात्मन्यद्वये निर्विशेषे । • प्रविलसति समाधावस्य सर्वो विकल्पो विलयनमुपगच्छेद्वस्तुतत्वावधृत्या ॥३५५॥ अद्वितीय और निर्विशेष परमात्मामें बुद्धिके दोषसे 'तू, मैं, यह' ऐसी कल्पना होती है और वही सम्पूर्ण विकल्प समाधिमें विघ्नरूपसे स्फुरित होता है; किन्तु तत्त्व-वस्तुका यथावत् ग्रहण होनेसे वह सब लीन हो जाता है । शान्तो दान्तः परमपरतः शान्तियुक्तः समाधि कुर्वनित्यं कलयति यतिः स्वस्य सर्वात्मभावम् । तेनाविद्यातिमिरजनितान्साधुदग्ध्वा विकल्पान् ब्रह्माकृत्यानिवसति सुखं निष्क्रियो निर्विकल्पः ॥३५६॥ योगी पुरुष चित्तकी शान्ति, इन्द्रियनिग्रह, विषयोंसे उपरति और क्षमासे युक्त होकर समाधिका निरन्तर अभ्यास करता हुआ अपने सर्वात्मभावका अनुभव करता है और उसके द्वारा. अविद्यारूप अन्धकारसे उत्पन्न हुए समस्त विकल्पोंका भलीभाँति ध्वंस http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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