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________________ ब्रम-भावना क्षुधा-पिपासा आदि छः ऊर्मियोंसे रहित योगिजन जिसका हृदयमें ध्यान करते हैं, जो इन्द्रियोंसे ग्रहण नहीं किया जा सकता तथा बुद्धिसे अगम्य और स्तुत्य ऐश्वर्यशाली है तुम वही ब्रह्म हो-ऐसी चित्तमें भावना करो। भ्रान्तिकल्पितजगत्कलाश्रयं __ स्वाश्रयं च सदसद्विलक्षणम् । निष्कलं निरुपमानमृद्धिमद् ब्रह्म तत्वमसि भावयात्मनि ॥२५८॥ जो इस भ्रान्तिकल्पित जगद्रूप कलाका आधार है, खयं अपने ही आश्रय स्थित है, सत् और असत् दोनोंसे भिन्न है तथा जो निरवयव, उपमारहित और परम ऐश्वर्यसम्पन्न है, वह परब्रह्म ही तुम हो-ऐसा चित्तमें चिन्तन करो। जन्मवृद्धिपरिणत्यपक्षय व्याधिनाशनविहीनमव्ययम् । विश्वसृष्ट्यवनघातकारणं ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२५९॥ जो जन्म, वृद्धि ( बढ़ना ), परिणति ( बदलना ), अपक्षय, व्याधि और नाश-शरीरके इन छहों विकारोंसे रहित और अविनाशी है तथा विश्वकी सृष्टि, पालन और विनाशका कारण है वह ब्रह्म ही तुम हो-ऐसी अपने मनमें भावना करो। अस्तमेदमनपास्तलक्षणं निस्तरङ्गजलराशिनिश्चलम् । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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