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________________ विवेक-चूडामणि ७६. मिट्टीसे अलग घड़ेका रूप कोई भी नहीं दिखा सकता । इसलिये घड़ा तो मोहसे ही कल्पित है; वास्तवमें सत्य तो तत्त्वस्वरूपा मृत्तिका ही है । सदैव तन्मात्रमेतन्न ततोऽन्यदस्ति । सहकार्य सकलं अस्तीति यो वक्ति न तस्य मोहो विनिर्गतो निद्रितवत्प्रजल्पः ॥२३२॥ 1 सत् ब्रह्मका कार्य यह सकल प्रपञ्च सत्खरूप ही है, क्योंकि यह सम्पूर्ण वही तो है, उससे भिन्न कुछ भी नहीं है । जो कहता है कि [ उससे पृथक् भी कुछ ] है, उसका मोह दूर नहीं हुआ; उसका यह कथन सोये हुए पुरुषके प्रलापके समान है । विश्वमित्येव वाणी मैवेदं श्रौती ब्रूतेऽथर्वनिष्ठा वरिष्ठा । तस्मादेतद् ब्रह्ममात्रं हि विश्वं नाधिष्ठानाद्भिन्नतारोपितस्य ॥२३३॥ 'यह सम्पूर्ण विश्व ब्रह्म ही है' ऐसा अति श्रेष्ठ अथर्व - श्रुति कहती है । इसलिये यह विश्व ब्रह्ममात्र ही है, क्योंकि अधिष्ठानसे आरोपित वस्तुकी पृथक् सत्ता हुआ ही नहीं करती । सत्यं यदि स्याञ्जगदेतदात्मनो ऽनन्तत्वहानिर्निंगमाप्रमाणता । असत्यवादित्वमपीशितुः स्या नैवत्त्रयं साधु हितं महात्मनाम् ॥ २३४॥ http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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