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________________ विवेक-थामणि उस ब्रह्मात्मैक्य-ज्ञानकी सिद्धि आत्मा और अनात्माका भली प्रकार विवेक ( पार्थक्य-ज्ञान ) हो जानेसे ही होती है । इसलिये प्रत्यगात्मा और मिथ्यात्माका भली प्रकार विवेचन करना चाहिये । जलं पङ्कवदत्यन्तं पङ्कापाये जलं स्फुटम् । यथा भाति तथात्मापि दोषाभावे स्फुटप्रमः ॥२०६॥ अत्यन्त गॅदला जल भी जिस प्रकार कीचड़के बैठ जानेपर खच्छ जलमात्र रह जाता है उसी प्रकार दोषसे रहित हो जानेपर आत्मा भी स्पष्टतया प्रकाशित होने लगता है । - असभिवृत्तौ तु सदात्मना स्फुटं प्रतीतिरेतस्य भवेत्प्रतीचः। ततो निरास: करणीय एवा- . com सदात्मनः साध्वहमादिवस्तुनः ॥२०७॥ सत्य आत्माके विचारसे असत्की निवृत्ति होनेपर इस प्रत्यक् ( आन्तरिक ) आत्माकी स्पष्ट प्रतीति होने लगती है । अतः अहंकार आदि असदात्माओंका भली प्रकार बाध करना ही चाहिये । अतो नायं परात्मा स्याद्विज्ञानमयशब्दमाक् । विकारित्वाज्जडत्वाच्च परिच्छिन्नत्वहेतुतः। दृश्यत्वाद्वयभिचारित्वामानित्यो नित्य इष्यते ॥२०॥ अतएव विज्ञानमय शब्दसे कहा जानेवाला यह विज्ञानमय कोश भी विकारी, जड, परिच्छिन्न तथा दृश्य और व्यभिचारी होनेके कारण परात्मा नहीं हो सकता; [ क्योंकि यह अनित्य है] और अनित्य वस्तु कभी नित्य नहीं हो सकती। http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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