________________
३२
विवेक यूगमणि
जिसके आश्रयसे जीवको सम्पूर्ण बाह्य जगत् प्रतीत होता है, गृहस्थके घरके तुल्य उसे ही स्थूल देह जानो। स्थूलस्य सम्भवजरामरणानि धर्माः
स्थौल्यादयो बहुविधाः शिशुताद्यवस्थाः। वर्णाश्रमादिनियमा बहुधा यमाः स्युः
पूजावमानबहुमानमुखा विशेषाः ॥९३॥ स्थूल देहके ही जन्म, जरा, मरण तथा स्थूलता आदि धर्म हैं, बालकपन आदि नाना प्रकारकी अवस्थाएँ हैं; वर्णाश्रमादिके निमित्तसे अनेक प्रकारके नियम और यम हैं; तथा इसीकी पूजा, मान, अपमान आदि विशेषताएँ हैं।
www. दश इन्द्रियाँ . com बुद्धीन्द्रियाणि श्रवणं त्वगक्षि
घ्राणं च जिह्वा विषयावबोधनात् । वाक्पाणिपादं गुदमप्युपस्थः
कर्मेन्द्रियाणि प्रवणेन कर्मसु ॥९४॥ श्रवण, त्वचा, नेत्र, घ्राण और जिह्वा-ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, क्योंकि इनसे विषयका ज्ञान होता है; तथा वाक्, पाणि, पाद, गुदा और उपस्थ-ये कर्मेन्द्रियाँ हैं, क्योंकि इनका कर्मोकी ओर झुकाव होता है।
अन्तःकरणचतुष्टय निगद्यतेऽन्तःकरणं मनोधी
रहंकृतिचित्तमिति खवृत्तिमिः ।
http://www.Apnihindi.com