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________________ विवेक-सामणि विषय-निन्दा शब्दादिमिः पञ्चभिरेव पञ्च पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धाः । कुरङ्गमातङ्गपतङ्गमीन भृङ्गा नरः पञ्चभिरश्चितः किम् ॥८॥ अपने-अपने स्वभावके अनुसार शब्दादि पाँच विषयोंमेंसे केवल एक-एकसे बंधे हुए हरिण, हाथी, पतङ्ग, मछली और भौंरे मृत्युको प्राप्त होते हैं, फिर इन पाँचोंसे जकड़ा हुआ मनुष्य कैसे बच सकता है ? दोषेण तीवो विषयः कृष्णसर्पविषादपि । विषं निहन्ति भोक्तारं द्रष्टारं चक्षुषाप्ययम् ॥७९॥ दोषमें विषय काले सर्पके विषसे भी अधिक तीव्र है, क्योंकि विष तो खानेवालेको ही मारता है, परन्तु विषय तो आँखसे देखनेवालेको भी नहीं छोड़ते। विषयाशामहापाशाद्यो विमुक्तः सुदुस्त्यजात् । स एव कल्पते मुक्त्यै नान्यः षट्शास्त्रवेद्यपि ॥८॥ जो विषयोंकी आशारूप कठिन बन्धनसे छूटा हुआ है वही मोक्षका भागी होता है और कोई नहीं; चाहे वह छहों दर्शनोंका झाता क्यों न हो। आपातवैराग्यवतो मुमुक्षुन् भवाब्धिपारं प्रतियातुमुद्यतान् । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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